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महापुराण
[ ३८.१३. ६णच्चि उ णवरसालु तियसेसरु अहिणंदिउ जियसत्तु णरेसरु । तासु घरंगणि वण्णविचित्तई रयणई पुणु णवमास णिहित्तई । धणयाएसें जक्खकुमारिहिं
घोसियसुमहुरसाहुँ कारिहिं । कामकोहमयमोह विहंजणि णिव्वुइ रिसहजिणिदि णिरंजणि । जलणिहिसमहं कालपरिवाडिहिं जा पण्णासलक्खु गय कोडिहिं। घत्ता-ता माहमासंसियदसमिदिणि बीयउ सिवपयगामिउ ।।
तित्थंकर णाणत्तयसहिउ उप्पण्णउ जगसामिउ ॥१३॥
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उप्पण्णइ जिणि आऊरिय घर केहिं वि समुग्गय जयघंटारव । कहि वि मइंदणिणाय सुभइरव कहिं वि समुग्गय जयघंटारव । आसणकं विम्हावियमइ
कंपिउ अहिवइ महिवइ सुरवइ। दसणकमलसरणच्चियसुरवरि मयजलमिलियघुलियबहुमहुयरि । सयमहु मुणिमहसयणिव्वूढउ अइरावणि वारणि आरूढउ। भंभाभूरिभेरिसंघाहिं
वज्जंतहिं वाइतँणिणायहिं । जिणकमकमलजुयलसंगयमणु सवहु सवाहणु सधउ सपहरणु । सोमभीमभूसाभाभासुर
चलिय हरि सरसरसिर सुरासुर । कोसलणयरि झड त्ति पराइय परियंचेवि तिवार घरु आइय । और घरमें देवताओंकी स्तुतिका कल-कल शब्द होने लगा। इन्द्रने अत्यन्त मधुर नृत्य किया, उसने राजा जितशत्रुका अभिनन्दन किया। नौ माह तक उसके घरमें रत्नोंकी वर्षा होती रही। जिन्होंने साधुकारकी घोषणा की है ऐसी यक्ष-कुमारियोंने रंगबिरंगे रत्नोंकी वर्षा कुबेरके आदेशसे की। काम, क्रोध, मद और मोहका नाश करनेवाले ऋषभ जिनेन्द्रके निर्वाणको प्राप्त होनेके बाद, पांच लाख करोड़ वर्ष बीत जाने पर
घत्ता-माघ माहके शक्लपक्षकी दसमीके दिन शिवपदगामी तीन ज्ञानके धारी विश्वके स्वामी द्वितीय तीर्थकर अजितनाथका जन्म हुआ ।।१३।।
अजितनाथ जिनके उत्पन्न होनेपर धरती आपूरित हो उठी। कहींपर जय-जय और घण्टोंके शब्द होने लगे, कहीं भयंकर सिंहनाद शब्द हो रहा था, कहीं जयघण्टारव उठा, आसनके कम्पायमान होनेसे जिसकी बुद्धि विस्मित है ऐसे नागराज, पृथ्वीराज और देवराज कांप उठे, जिसके दांतोंपर स्थित सरोवरके कमलपर देववर नृत्य कर रहे हैं, जिसके मदजलसे आकृष्ट होकर अनेक भ्रमर गुनगुना रहे हैं, ऐसे ऐरावत महागजपर, तीर्थंकरोंके अभिषेकका निर्वाह करनेवाला इन्द्र आरूढ़ हो गया। भम्भा और प्रचुर भेरियोंके समूहों, बजते हुए वाद्योंके निनादोंके साथ, जिनवरके चरणकमल युगलमें संगतमन अपनी वधू, वाहन, ध्वज और अस्त्रोंके साथ, सौम्य विशाल भूषाको आभासे भास्वर, प्रेमसे शब्द करते हुए इन्द्र, सुर और असुर चले। वे शीघ्र ही अयोध्या नगरी पहुंचे, तीन परिअर्चनाएं कर वे घरमें आये।
३. A°कुमारहिं । ४. A °साहुक्कारहिं। ५. A°लक्ख । ६. A°मासि। ७. A सिवपुर ।
८. A तित्थंकर । १४. १. A P कहि मि । २. A विभावियं । ३. P भंभाभेरिपडह। ४. P वायत्त ।
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