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महापुराण
[५६. ८. १०१० ता चवइ उविंदुप्पण्णरोसु दक्खालमि तहु असिवरु विकोसु ।
जइ लोहिउ णउ पायमि पिसाय तो छित्ता लइ मई धम्मपाय । ता दूयहु मुहि णीसरिय वाय. जिह जंपइ तिह को घिवइ घाय । घत्ता-कहजोग्गइ महिलहुँ अग्गइ सयलु वि गज्जइ णिययघरि ।
जससंगहि जीवियणिग्गहि विरल उ पहरइ संगरि ॥७॥
दुवई-एंव चवंतु दूर गउ रायहु कहियउ तेण वइयरो॥
देव ण देइ कप्पु वसुहासुउ गलगन्जइ भयंकरो ।। ता वासुएवस्स
पडिवासुएवस्स। दुंदुहिणिणायाई रणभूमिआयाई। संणाहबद्धाई
णियई कुद्धाई। सेण्णाई जुझंति
वीरेहिं रुज्झंति । खग्गेहिं छिज्जति कोंतेहिं भिजति । वम्माइं लुम्मति
रत्तेण तिम्मति । चम्माई फुदृति
अष्ट्रियई तुटुंति । वूहाई विहडंति
मंडलिय णिवडंति । अंतेहिं गुप्पंति
खेयर समपंति । वडूढंतसमरट्टि
गयदंतसंघट्टि। गरुलेस महुराय
उक्खित्त णाराय। चिरवइरियालग्ग धणुवेयकयमग्ग। क्यों रोका ? युद्धभावके दोषको छोड़ो, अपने स्वामीके सब धनको भेज दो।" तब उत्पन्नरोष नारायण कहता है-"मैं उसे कोश (म्यान ) रहित तलवार दिखाऊंगा, यदि मैंने उस लोभी पिशाचका पतन नहीं किया, तो लो मैंने बलभद्र धर्मके पैर छुए ?" इसपर दूतके मुखसे यह बात निकली कि जिस प्रकार कोई बात करता है, उस प्रकार वह आघात कहां दे पाता है ?
घता-कथाके योगमें (प्रसंगमें ) अपने घरमें महिलाओंके आगे सभी गरजते हैं। लेकिन जिसमें यशका संग्रह और जीवनका निग्रह है, ऐसे युद्ध में विरला ही प्रहार कर पाता है ॥७॥
इस प्रकार कहता हुआ दूत चला गया। उसने सारा वृत्तान्त राजासे कहा कि हे देव, वह कर नहीं देता । पृथ्वीरानीका बेटा भयंकर गरज रहा है। तब वासुदेव और प्रतिवासुदेवकी सेनाएं आमने-सामने आ गयीं। उनमें नगाडोंकी ध्वनि हो रही थी, दोनों युद्धभूमिमें उपस्थित थीं, कवचोंसे सन्नद्ध थों, निर्दय और क्रुद्ध थीं। सेनाएं लड़ती हैं, वीरोंके द्वारा अवरुद्ध कर ली जाती हैं, खड्गोंसे खण्डित होती हैं, भालोंसे भिदती हैं, कवच लुप्त होते हैं, रक्तसे आर्द्र होते हैं, चर्म फूटता है, हड्डियां टूटती हैं, व्यूह विघटित होते हैं, मण्डलाकार सेनाएँ गिरती हैं, आंतोंसे उलझते हैं, विद्याधर समर्पण करते हैं । जिसमें गजदन्तोंका संघट्टन है, ऐसे उस बढ़ते हुए समरमें, जो ८. १. AP तुटुंति । २. AP फुटुंति ।
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