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महापुराण
[६७. ६. ६
सुविसुद्धे गब्भासए
धणधारावरिसे कए। पढममासि पढमे दिणे आसिणिगइ हरिणंकणे। राणउ जो रइकंदओ . वइसवणो अहमिदओ। गयरूवेणवइण्णओ
राणीगब्भि णिसण्णओ। सो सुरेहिं अहिणंदिओ फणिकिणरणरवंदिओ। णिवाणं पत्ते अरे
वरिसकोडिसहसंतरे। मम्गसिरे तुहिणायरे सियएयारसिवासरे। आसिणिरिक्खे जायओ तित्थयरो हयरायओ। एक्कुणवीसमओ इमो
णररूवेण व संजमो । अहिसित्तो अमरायले हरिणा पंडुसिलायले।
घत्ता-मल्लियमालागंधो जाणिओ।
इंदेण जिणो मल्ली भाणिओ।।६।।
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अणुअत्थं पवियप्पिओ जणणीहत्थे अप्पिओ। घणडंबरघल्लियपया
देवा णियवासं गया। बुहमुहपोमाणं इणो
वड्ढइ कालेणं जिणो। जाओ जायरूवाहओ पंचवीसधणुदीहओ। आउसु तस्स सहासई
वरिसहं पणपण्णासइं। वरिससए वोलीणए
आरूढो सुरपूणए। विलासिनियोंका समूह आ गया। धनधाराकी वर्षा होनेपर सुविशुद्ध गर्भाशयमें चैत्र शुक्ला प्रतिपदाके दिन प्रातःकाल चन्द्रमासे युक्त अश्विनी नक्षत्रमें रतिका अंकुर वह राजा वैश्रवण अहमेन्द्र गजरूपमें अवतीर्ण होकर रानीके गर्भ में स्थित हो गया। नाग, किन्नर और मनुष्योंके द्वारा वन्दनीय वह देवों के द्वारा अभिनन्दित किया गया। अरनाथके निर्वाण प्राप्त करने के बाद एक हजार करोड वर्ष बीतनेपर मार्गशीर्ष सूदी एकादशोके दिन अश्विनी नक्षत्र में कामदेवका नाश करनेवाले तीर्थंकरका जन्म हुआ। उन्नीसवें तीर्थंकर यह जैसे मनुष्यके रूपमें मूर्त संयम थे। इन्द्र के द्वारा सुमेरुपर्वतपर पाण्डुकशिलाके ऊपर वह अभिषिक्त हुए।
घत्ता-मल्लिकाको मालाके गन्धसे युक्त जानकर इन्द्रने उन जिनको मल्ली कहा ।।६।।
उसने सार्थक नाम समझा और माताके हाथमें उन्हें दे दिया। मेघोंके आडम्बर ( घटा) में पैर रखते हुए देवता अपने निवासगृह चले गये। जो बुधोंके मुखरूपी कमलोंके लिए सूर्य हैं, ऐसे जिन भगवान् समयके साथ बढ़ने लगे। वह स्वर्णरूप हो गये एवं वह पच्चीस धनुष ऊंचे थे। उनकी आयु पचपन हजार वर्ष थी। सौ वर्ष आयु पूरी होनेपर वह ऐरावतपर आरूढ़ हुए। वह
२. A अस्सिणि । ३. A राओ जो । ४. AP रुइरुंदओ । ५. A अस्सिणि । ७. १. A अणुअच्छे and gloss आश्चर्यम्; T अणुअत्थं आश्चर्यम् । २. Aधणुदेहओ। ३. A सुरथूणए।
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