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-६७.८.८ ]
कुइ विवाहपट्टणं परिहापाणियदुग्गमं घडियपायारयं
पोमरायकयभारुणं हसियणिसावइतियं
सरइ पहू अवराइयं खीणं तेण विमाणयं for होही किं थिरं
महाकवि पुष्पदन्त विरचित
ता सारस्यभासियं कुंभविस्य तरुहो इंदेणं ससहर मुहो जयणे जाणे थक्कओ कामे सुविरतओ जन्मदिणे णक्खत्तए णिववरं तिसेयइए जुओ सातवे ओ
पेच्छ कुरो पट्टणं । बहुदुवारकयणिग्गमं । पवरट्टालयसारयं । उब्भियधुयधयतोरणं । पेच्छंतो घरपंतियं ।
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सुकयं मज्झ पुराइयं । मुक्कं अहमिंदाणयं । रजम्मे यरं घरं ।
घत्ता - छत्तायारयं सिवमहिमंडलं || करमि तवं परं लहमि धुवं फलं ॥७॥
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सोऊणं सुईमीसियं । तरुणीणं विवरंमुहो । हविओ दिक्खासंमुहो । कुवलय कुमुय मियंकओ । सरयवणं संपत्तओ । पक्खे तम्मि पउत्तए । मोहणिबंधाओ चुओ । णाचणंकिओ ।
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४. AP कुमरो । ५. AP पोमरायकिरणारुणं । ८. १. A सुयमोसियं । २. A तिसईए; P विसइएन ।
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विवाह के लिए प्रवर्तन करते हैं। कुमार नगरको देखते हैं कि जो परिखा और पानीसे दुर्गम है, जिसमें बाहर जानेके अनेक द्वार हैं, जिसके परकोटे स्वर्णरचित हैं, जिसमें श्रेष्ठ और विशाल अट्टालिकाएँ हैं, जो पद्मराग मणियोंकी आभासे युक्त हैं, जिसमें हिलती हुई ऊँची पताकाओंके तोरण हैं । गृह-पंक्तियोंको देखते हुए कुमार मल्लि अपराजित विमानकी याद करता है । मेरा पुरातन पुण्य क्षीण हो गया है उसीसे अहमेन्द्र विमानसे में मुक्त हूँ । इस मनुष्य जन्मके नगर और घर क्या स्थिर रहते हैं ।
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घत्ता - मैं केवल तप करूँगा और छत्राकार शिवमहीमण्डलके शाश्वत फलका भोग करूंगा ॥७॥
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तब लोकान्तिक देवोंका आगमयुक्त कथन सुनकर स्त्रियोंसे पराङ्मुख दीक्षाके लिए उद्यत चन्द्रमाके समान मुखवाले कुम्भराजाके पुत्र वैश्रवणका इन्द्रने अभिषेक किया। 'जयन' यानमें बैठकर कुवलय (पृथ्वीरूपी) कुमुदके लिए चन्द्रमाके समान कामों से अत्यन्त विरक्त वह शरद्वनमें पहुँचे । जन्मके दिन अर्थात् अगहन सुदी एकादशीके दिन अश्विनी नक्षत्रमें तीन सौ राजाओं के साथ वह मोह बन्धनोंसे छूट गये । सायंकाल सुतप में स्थित हो गये और चार ज्ञानोंसे अंकित
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