Book Title: Mahapurana Part 3
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 561
________________ महापुराण [ XXXIXजन्म और मृत्युको शृंखला संलग्न रहती है । और भी दूसरे कर्म होते हैं जो बुरे कार्य है। 21. 6a-b कुसुमवरिसु-पांच आश्चर्योंकी वर्षा कुसुमवर्षा है। स्वर्गके फूलोंका बरसना, सुरपटहनिनाद, स्वर्गके नगाड़ोंका शब्द, वमहारा-स्वर्गसे स्वर्णकी वर्षा, चेलुक्खेव-झण्डे ऊँचे करना, अहो दाणंदानकी शालीनतामें किये गये प्रशंसाके स्वर्गीय शब्द । तुलना कीजिए विवागसुयसे, पृष्ठ 78। 23. समवसरणका वर्णन । 24. आठ प्रातिहाल्का वर्णन-अशोकवृक्ष, पुष्पवृष्टि, दिव्यध्वनि, चामर, सिंहासन, भामण्डल, देवदुन्दुभि और छत्र। 10-12 और बादका कड़वक अपने गणोंका वर्णन करता है इसके लिए चित्रफलक देखिए। 26. la सिहरिहि-सुमेरु पर्वतपर। 56 = दण्डकवाडुरुजगजगपूरणु-उस प्रक्रियाका वर्णन करता है जिससे जिनेन्द्रकी आत्मा सिद्धशिलापर आरोहण करती है । XXXIX यह सन्धि सगरकी कहानी बताती है, जो जैनों के दूसरे चक्रवर्ती हैं । 1. 2 मगहाहिव-श्रेणिक, मगध देशका राजा, जिसने गणधर गौतम इन्द्रभूतिसे प्रेसठ शलाका पुरुषोंके जीवनके बारेमें कहने के लिए कहा था। 4a दाहिणयलि के लिए-'ए' और 'के' प्रतियों में सामान्यतः उत्तरयलि 'पाठ' है, परन्तु 'के' प्रति इसकी जगह शुद्ध पाठ दाहिणयलि मानती है । गुणभद्रके उत्तरपुराणमें द्वीपेऽत्र प्राग्विदेहस्य सीताप्राग्भागभषणे । विषये वत्सकावत्यां पृथिवीनगराधिपः ।। 48-58 12 घरचूलाह्यणहयल–राजधानी पृथ्वीपुर जो अपने प्रासादोंके शिखरोंसे आकाश को छूती थी। 2. 96 सिसुमोहणीउ मुणिहि वि दुवारु-बच्चोंके प्रति प्रेम को रोकना मुनियोंके लिए भी कठिन है। 10 जिणवरवयणु रसायणु-राजाके मन्त्रियोंने उस दुःखको सहने के लिए जिनवरका वचनामृत दिया। 4. 3a इयरु वि-अर्थात् महारुत मन्त्री। 50 किउ दोहि मि पडिबोहणणिबंधु-देव महाबल, (पूर्वजन्मका राजा जयसेन ) और देव मणिकेतु (पूर्वजन्मका महारुत मन्त्री), दोनोंने यह समझौता किया कि जो पहले मनुष्य होगा, उसे दूसरा इस तथ्यका स्मरण करायेगा जो स्वर्ग में देर तक देव रहता है । 5. 9-10 सार्वभौम राजाके ये चौदह रत्न हैं। 6. 3a जितनी सम्पत्ति भरतको थी, उतनी ही सगरकी भी हुई, चक्रवर्तीके रूपमें। , 7. la मयमउलवियणयण-हाथी मदके कारण आंखें बन्द किये हुए था। 10a रयणकेउ अर्थात् मणिकेतु । 8. 90 तरुणिहिं कोक्किज्जइ हसिवि ताउ-जवान औरतें उसपर हंसों और उसे पापा कहकर पुकारा। 10. 2a देवसाहु-मणिकेतुने देव होनेके कारण साधुका रूप धारण कर लिया। 12. गंगाके अवतरणका वर्णन । 14. 2a विहिं ऊणी तट्ठी-साठ हजार पुत्रोंमें-से दोको छोड़कर, (भीम और भागीरथ), जो अपनेको मौतसे बचा सके। 96 गत आवह णउ सरिसरतरंगु-नदीके जलकी तरंगें, जब एक बार जाती हैं तब दुबारा नहीं भातीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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