Book Title: Mahapurana Part 3
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 573
________________ महापुराण [ LXVI तावसु- राजा जिन साधु बना जब कि ब्राह्मण तपस्वी । विशेष रूपसे वह शिवको भक्ति सिद्धान्तोंका अनुयायी बना । 12. 6-7 णच्चइ देउ – इन पंक्तियों में शिव के चरित्र की विशेषताओंका वर्णन है कि जो ताण्डव नृत्य करते हैं, और जो पार्वतीको रखते हैं। डमरु बजाते हैं, त्रिपुर को जलाते हैं, और राक्षसों का संहार करते हैं । जिनवर कहते हैं कि ऐसी ईश्वरता संसारसे नहीं बचा सकती । 13. 66 तावसमासुरवासि रसंति - चिड़ा चिड़िया के जोड़ने दाढ़ीमें घोंसला बना लिया साधुकी और वे उसमें गाते हैं । ५२६ 11. 8a णिउ जिणवररिसि सोति अर्थात् वैदिकधर्मका अनुयायी साधक बना 16, 1 -2 इन पंक्तियोंमें कान्यकुब्ज नगरका नाम है । क्योंकि उसमें साधुसे विवाह नहीं करनेपर कन्यामको शापके कारण 'बोनी' बनना पड़ा । 24, 16 खतिय सलु विछारु परत्तिवि - सभी क्षत्रियोंको जलाकर खाक कर देनेवाले परत्तिवि परतसे बना है जो देशी है, और जो आधुनिक मराठी में सुरक्षित है । LXVI 1. 9 वित्तदुक्खोरिया के कारण उत्पन्न दुख उसके शरीरको कान्ति चली गयी । 106 पर ताउ ण पिच्छमि - परन्तु मैं अपने पितासे ( सहस्रबाहु से ) नहीं मिलती । 5. 56 कोसलं पुरं— कोसलपुर अर्थात् साकेत, जो कोसल राज्यको राजधानी है । 6. 30 परमे वरु अर्थात् सुभौम, जो बाद में चक्रवर्ती होनेवाले थे। 106 एउ जि-पिता के दाँतोंसे पकड़ा हुआ मिट्टीका प्लेट इस प्रकार चक्रमें बदल गया । 10. 10] सम्भंवरि ( श्वभ्रान्तरमें) नरक में । LXVII 4. 6a हिरण्यगभोजिन-हिरण्यगर्भ शब्द हिन्दुपुराण विद्यामें ब्रह्मा से भेद बताने के लिए है परन्तु जैनपुराण विद्या में यह तीर्थकरका वाचक है । 9. 1a दिणि छक्के विच्छिण्णए-दीक्षाके छह दिन बाद । अर्थात् पौष कृष्ण द्वितीयाके दिन मल्लिने केवलज्ञान प्राप्त कर लिया। गुणभद्र भी इस तिथिको इस रूप में देते हैं। 13. 11 पिसुण महंतो - पिशुन नामका मन्त्री, जिसने राम-विरामके बारेमें उनके पिता 'वीर' को गलत सूचना दी वह बलि हुआ । 14. 46 वाणारासि - वाराणसी, छन्दके कारण तीसरे अक्षरको दीर्घ किया गया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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