Book Title: Mahapurana Part 3
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 572
________________ -LXV 1 अँगरेजी टिप्पणियोंका हिन्दी अनुवाद ५२५ 15. 13 माउंचियारिपसरु-जिसने शत्रुओंकी प्रगति रोक दी है । 21. 11 घणवाहणहु-मेघरथका । LXII 2. 2a गरुडेण वि जिप्पइ एहु ण वि-यह रसोइया गरुड़के द्वारा भी नहीं जीता जा सकता । 5. 10b जाउडयजडिलमंडियथणिहिं-जिसके स्तन केशरसे सघन रँगे हुए हैं। 7. 9a to 10. 26-यहां पूरी घरती और उसके खण्डोंका वर्णन है जो आकाशसे दिखाई देते हैं। 17. 12b पक्खें-पक्षीके द्वारा। इस शब्दको क्या पक्खिके रूपमें लिया जा सकता है, जो वाद्यात्मक संगीतका एक अंग है। LXIII 2. 7a एरादेविड-दूसरी जगह शान्तिकी माताका नाम अइरा दिया गया है, उदाहरण के लिए 1.16 और 116 में। 5. 5-6-इन पंक्तियोंमें उन रत्नोंकी सूची है, जो चक्रवर्ती शान्तिनाथको प्राप्त थे। 11. 1-7-इन पंक्तियों में शान्तिनाथ और चक्रायुधके पूर्वभवोंका वर्णन है । शान्तिनाथके कुल 12 भव हैं-श्रीषेण, कुरुनरदेव, विद्याधर, देव, बलदेव, देव, वज्रायुध, चक्रवर्ती, देव, मेघरथ, सर्वार्थसिद्धिदेव, चक्रायुधके ये भव थे-अनिन्दिता, कुरुणर, विमलप्रभदेव, श्री विजय, देव, अनन्तवीर्य, वासुदेव, नारफ, मेघनाद, प्रतीन्द्र, सहस्रायुध, अहमिन्द्र, दृढ़रथ ( मेघरथभ्राता), सर्वार्थसिद्धिदेव, चक्रायुध । J-XIV 1. 7b जो ण करइ करि कत्तिय कवालु-कुन्थु या तीर्थकर, जो अपने हाथमें मानवीकपाल नहीं रखते, और बाघका चमड़ा जैसा कि शिब रखते हैं, इसलिए तीर्थकर शिवसे बहत ऊँचे हैं। 2 8b वयविहिजोग्गु दिण्णु वि ण लेह-हाथ पसारे हुए, वह ऐसी चीजें स्वीकार नहीं करते, जो अपनी व्रतनिष्ठाके कारण, वे ग्रहण नहीं कर सकते । 8. 16णियजम्ममासपक्खंतरालि-उसी दिन माह और पक्षमें, कि जब उनका जन्म हुआ। अर्थात् वैशाख शुक्ल प्रतिपदाके दिन । 25 कित्तियणक्खत्तासिइ ससंकि-जबकि चन्द्रमा कृत्तिका नक्षत्रके संगममें था। LXV 3. 4b पट्टणु रयणकिरणअइसइयउ-रत्नोंकी किरणोंके कारण नगर अत्यन्त चमकदार था। 4. 96-106 वरिसकोडि सहसेण विहीणह-जबकि कुन्थ के निर्वाणके एक हजार करोड़ वर्ष बीत गये। 5. 56 दहदहधणुतणु--शरीर बीस धनुष ऊंचा था, यद्यपि गुणभद्र तीस धनुष ऊँचा शरीर बताते हैं; जो अरहको ऊंचाईसे तुलनीय है। तुलना कीजिए = त्रिशच्चापतनत्सेधः चारुचामीकरच्छवि:-65. 26 जो अधिक सम्भवनीय है। 9. 1-8 ध्यान दीजिए-अर शब्दपर अलंकारिता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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