Book Title: Mahapurana Part 3
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 570
________________ -LVIII ] . अंगरेजी टिप्पणियोंका हिन्दी अनुवाद ५२३ 9. 4b, 60 सुंदरिहि तणुएण-मधुके द्वारा । 5a-b-6a विउससयणकयवयणविणुएण-~मधुके द्वारा जो सैकड़ों विज्ञानोंके समान काव्य रचनामें प्रशंसित है। 36 महमहमुक्के चक्कें-चक्रके द्वारा, जो मधुके शत्रु द्वारा प्रक्षिप्त था। महुमह-मधुमथन विष्णुका एक नाम है, हिन्दूपुराण विद्या । LVII इस सन्धिमें तीन व्यक्तियोंकी कथा है। ये हैं-संजयन्त, मेरु और मन्दर; और उनके पूर्वभवोंको जीवनियोंकी भी कथा है। इनमें मेरु और मन्दरकी जीवनियाँ प्रमुख है जो विमलनाथके गणधर हैं। नीचे दी गयी सूची में इन दोनों के पूर्वभव कालक्रमानुसार इस प्रकार हैं (a) संजयन्त-1. सिंहसेन, 2. अशनिघोष हस्ती, 3. श्रीधरदेव, 4. रश्मिवेग, 5. अर्कप्रभ, 6. वज्रायुध, 7. सर्वार्थसिद्धि अहमिन्द्र, 8. संजयन्त, इस जीवनमें उसने तपस्या ग्रहण की। (b) मेरु-1. मधुरा, 2. रामदत्ता, 3. भास्करदेव, 4. श्रीधरा, 5. रत्नमाला, 6. वीतभय, 7. आदित्य प्रभ, 8. मेरु, जो विमलनाथके गणधर हैं। (c) मन्दर-1. वारुणी, 2. पूर्णचन्द्र, 3. वैडूर्यदेव, 4. यशोधरा, 5. रुचकप्रभ, 6. रत्नायुध, 7. विभीषण, 8. द्वितीय नारकी, 9. श्रीधामा, 10. ब्रह्मस्वर्गस्थित देव, 11. जयन्तधरणेन्द्र, 12. मन्दर, जो विमलके गणधर हैं। इस वर्णनात्मक वृत्तान्तमें दो और प्रमुख व्यक्तियोंका वर्णन है। वे हैं (1) सत्यघोष या श्रीभूति, सिंहसेनका मन्त्री, जो अगन्धनसर्प, चमरमग, कुक्कुटसर्प, तृतीयनारक, अजगर, चतुर्थनारक, सादिभव, सप्तनारक, सर्प, नारकी, भृगशृंग और विद्युदंष्ट्र। (2) भद्रमित्र व्यापारी जो सिंहचन्द्र, प्रीतिकरदेव और चक्रायुध । 1 56 चिज्जइ-चि से विकसित है तोड़ने और तब खाने के लिए । 'टो' में इसका अर्थ खाना दिया है, जो दूसरा अर्थ है । 6. 10 देवदिवायराहु-आदित्यप्रभ देवका जो परवर्ती दूसरे भवमें मेरु बना। 9. ilaविणि वि एयई-यज्ञोपवीत और मुद्रिका । 14. la णावइ वारुणि-पुराके समान । 15. 6a तूलिहि-सूतसे बना गद्दा । 18. 4b कम्मारउ-श्रमिक । LVIII 9. la पुणु तहु कइ-पंक्तिका अर्थ है अनन्तके लिए (तह कई = तस्य कृते ) राज्यश्री प्रेमको कसकसे पीड़ित हो उठी और मूछित हो गयी। परन्तु उसे सचेतन किया गया, चंवरों से । 11. 8b मिहिरमहाहिय-कान्तिमें श्रेष्ठ । सूर्यसे श्रेष्ठ । 13. 12a अमवासाणिसियहि-अमावस्याकी रातमें। गुणभद्र और पुष्पदन्त माहका उल्लेख नहीं करते जो चैत्रमास है । हमें माहका नाम 11. la से लेना पड़ा है। 16. 96 महसूयणु-मधुसूदन विष्णुका नाम है। हिन्दूपुराण विद्यामें यह विष्णुका नाम है । क्या मखसूदनको उस मधुसूदनके समकक्ष माना जाये जो मधुसूदनसे समता रखता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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