Book Title: Mahapurana Part 3
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 560
________________ -xxxVIII ] अंगरेजी टिप्पणियोंका हिन्दी अनुवाद ५१३ विक्रियाधारीऋद्धिमत, मनःपर्ययज्ञानी, अनुत्तरवादी, आर्यिका, श्रावक, श्राविका और देव, देवी तिथंच इत्यादि । इस संघके साथ भगवान् अजितनाथने 53 लाख पूर्व तक धरतीपर भ्रमण किया (बारह वर्ष कम), तब वह सम्मेदशिखरपर गये और 72 लाख पूर्वका जीवन पूरा कर उन्होंने नौ महीनों तक प्रतिमाओंका अभ्यास किया और चैत्र शुक्ला पंचमीको उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया। इस अवसरपर देवोंने भगवान की पूजा की। अग्निकुमारने उनके शरीरका दाह-संस्कार किया। देवेन्द्रने आदरपूर्वक भस्मको इकट्ठा किया और उसे समुद्र में फेंक दिया। मैंने यहां अजितके जीवनका समूचा जीवन विस्तार दे दिया है। यही चीजें प्रायः प्रत्येक तीर्थकरके जीवन में दुहरायी जायेंगी। केवल समय, नामों, तिथियों में कुछ परिवर्तनके साथ । इस जिल्दमें वणित सभी तीर्थकरोंके जीवनके वर्णनमें इन बातोंको नहीं दुहराया जायेगा। इन विस्तारोंको हम चित्र रूपमें दे रहे हैं जिससे पाठक उन्हें समझ सकें। 7. 2a -सीयहि दाहिणकलि-'के' प्रतिमें उत्तर पाठ है, परन्तु हमने उसे सुधार दिया है। और उत्तर कर दिया है। गुणभद्रके उत्तरपुराणके प्रमाणपर, जिसमें पाठ इस प्रकारका है-सीतासरिदपाग्भागे वत्साख्यो विषयो महान् । वहाँ अपाग्भागका अर्थ है दक्षिण । 8 हलियहि-किसानोंके द्वारा । 8. 8a b जसु सोहग्गे-प्रेमके देवता ( कामदेव ) राजा विमलवाहनके सौन्दर्यके कारण पृष्ठभूमिमें चला गया इसलिए उसने शरीरको छोड़ दिया और वह अनंग हो गया । 9. 26 पंचमहन्वयमायउ-पांच महाव्रतोंको माता । अर्थात् पचीस भावनाएँ, एक-एक व्रत को पाँच भावनाएं। 8a दस वसुद्धिविण उ-सोलहकारणभावनाएं जो दर्शन-विशुद्धिसे शुरू होती हैं। विस्तारके लिए तत्त्वार्थ सूत्र देखिए VI. 24 । इन भावनाओंसे व्यक्तिको तीर्थकर गोत्रका बन्ध होता है। ___10. 9a सो अहममराहिउ-वह अहमिन्द्र जो पूर्वजन्ममें विमलवाहन था। 11b कणयमयणिलयण-(अयोध्या) जिसके स्वर्णप्रासाद हैं। 11. 16 माणवमाणिणिवेसें-धरतीको स्त्रियोंका वेश धारण किये हुए। 4 गभि ण थंतहुजिनके गर्भ में स्थित होने के पूर्व इन्द्रने स्वर्णकी वर्षा को । जिनेन्द्र अजितके विजयाके गर्भमें आनेके पूर्व । 12. सोलह स्वप्नोंके लिए म. पु. प्रथम जिल्द, पृ. 600-601 देखिए । 13. 4a-b कुंजरवेसें-अहमिन्द्र अपने जीवनको अवधि समाप्त कर (विजय विमान में) रानी विजयाके मुख में, एक हाथी के रूपमें इस प्रकार प्रविष्ट हुए जिस प्रकार सूर्य बादलोंमें प्रवेश करता है । 9-10 ये पंक्तियां ऋषभके निर्वाण, अजितनाथके विजयाके गर्भ में अवतरणके बीचकी अवधिका वर्णन करती हैं जो पचास करोड़ सागर प्रमाण है। 14. 4-5 दसणकमलसरणच्चियसुरवरि-इन्द्र अपने ऐरावत हाथीपर आरूढ़ हुआ। जिसकी कमलसरोवर के समान सँडपर देवता नृत्य कर रहे थे। 86 सरसरसिर-भक्तिसे परिपूर्ण बातें करते हए । __15. 6b मन्तु पणवसाहा संजोइवि-'ओं स्वाहा' मन्त्रका प्रयोग करते हए । 18. 94. वसुवइवसुमइकंताकतें-अजितके द्वारा, जिनकी दो पत्नियां थीं। अर्थात् धरती और लक्ष्मी । 19. 16 ईसमणीस समासमलीणी-स्वामी अजितका मस्तिष्क पूर्णतः मानसिक शान्तिमें निमग्न था। (सम, उपशम, वैराग्य )। 4b आउ वरिसवरिसेण जि खिज्जइ-मनुष्यकी आयु वर्ष-प्रतिवर्ष कम होती जाती है। 20. 4a-b गइदुचरित्तकम्मसंताणइ-अपनी जातिको जारी रखने के लिए, जिसका अर्थ है कर्मोकी परम्परा, जैसे-गति ( देवमनुष्यादिगति) खोटे कार्य ( दुश्चरित्र)। जातिको जारी रखनेके कर्ममें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574