Book Title: Mahapurana Part 3
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 558
________________ अँगरेजी टिप्पणियों का हिन्दी अनुवाद सन्धियोंको टिप्पणियों के सन्दर्भ रोमन अंकों में हैं, जबकि कड़वकों और पंक्तियों के अरबी अंकोंमें । वर्ण्य विषयका संक्षिप्त सार प्रारम्भिक परिचय में दिया गया है, जिससे पाठक मूलपाठको समझ सकें। ये टिप्पणियां उन संस्कृत टिप्पणियोंकी पूरक हैं, जो पृष्ठके नीचे पाद टिप्पणके रूप में दिये गये हैं। टीप्रभाचन्द्र के टिप्पणके लिए है। XXXVIII __1. 12b भवइजसोहो-सूर्यसे उत्पन्न किरणोंकी शोभा धारण करनेवाले, 26 प्रकाशयामिप्रकाशित करता हूँ या व्यक्त करता हूँ। पयासयामि = इसे समझना आसान है-परन्तु 'के' प्रति कभी-कभी ऐसे रूपोंको वरीयता देती है । तुलना कीजिए-बादकी पंक्तिसे (समासवि) साथ ही इच्छवि और अच्छवि । पांचवेंकी 10-11 पंक्ति या तीसरी पंक्ति में पडिच्छवि और ओहच्छवि, तीसरे कडवककी आठवीं पंक्ति । 2. 1b कहवयदियहई-कुछ दिनोंके लिए। 2a णिविण्णउ निविण्ण-उदास । णिविणोउ अर्थात् निविनोद । 'क' प्रतिका यह पाठ पढ़ने में समान रूपसे ठीक है और उसका अर्थ हो सकता है काव्यरचनाके विनोदसे रहित । परंतु मैंने णिविण्णउ पाठको उव्वे उ जि वित्थरइ णिरारिउ पाठके दृष्टिकोणसे ठीक समझा है, जो 4 के 9a में है, और टिप्पणके विचारसे भी। 9-10 खलसंकलि कालि-इत्यादि. भरत जिसने सरस्वती ( विद्याकी देवी ) का उद्धार किया, जो रिक्त अत्यन्त, या खतरनाक रास्तेपर जा रही थी। ( शून्य सुशून्य पथमें ) अथवा बुरे समयमें, (खाली आसमानमें ) जो दुर्जनोंसे व्याप्त है (खल संकुलि)। और खोटे चरित्रवाले लोगोंसे भरा है (कुसोलमइ)। उसे विनय करके । Modesty विनय । 3. अइयणदेवियश्वतणुजाएं-भरतके द्वारा जो अइयण (एयण) और देवि अव्वाका पुत्र था। 2b दुत्थियमित्ते-भरतके द्वारा, जो उन लोगोंका मित्र था, जो संकटमें थे। 3a मइं उवयारभावु णिव्वहणे-भरतके द्वारा, जिसने मुझपर उपकारोंकी वर्षा को। [ कवि पुष्पदन्तपर ], भरतने पुष्पदन्तको किस प्रकार उपकृत किया, यह, महापुराणके I. 3-10 कड़वकोंमें देखा जा सकता है, और जिल्द एक की भूमिकामें देखा जा सकता है । Pp-XXVIII | 10 तुह सिद्धहि इत्यादि । तुम नवरसोंका दोहन क्यों नहीं करते, अपनी वाणीरूपी कामधेनुसे । अथवा काव्यात्मक शक्तिसे जो तुम्हें सिद्ध है, या जिसपर तम्हारा अधिकार है। __ 4. 7a राउ राउणं संझहि केरउ-राजा, सन्ध्याके अरुण रागकी तरह है, अर्थात थोडे समय ठहरनेवाला है,b एक्कु वि पउ वि रएवउ भारउ-एक पदकी रचना करना भी बहुत बड़ा कार्य है। 10 जगु एउ इत्यादि-संसार गुणोंके साथ वक्र है जिस प्रकार कि धनुष जब डोरीपर खींचा जाता है। 5. 26-3a कविके अनुसार भरत सालवाहन (सातवाहन ) से बढ़कर है, इस बातमें कि भरत कवियोंका लगातार मित्र रहा है ( अणवरयरइयकइमेत्तिइ) 4 ab-यहाँ कवि उस किस्सेका सन्दर्भ दे रहा है कि राजा श्रीहर्षने कालिदासको अपने कन्धोंपर उठा लिया था । ऐतिहासिक दृष्टिसे यह सन्दर्भ दूसरोंसे भी समानता रखता है, जिनका कि भोजप्रबन्धमें उल्लेख है। श्रीहर्षकी जो बाणभट्टका आश्रयदाता है राजगद्दी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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