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अंगरेजी टिप्पणियोंका हिन्दी अनुवाद 3. 36 गुणदेवहं भवदेवहं ईसरु-अनन्त जिनवर गणघरों और जन्मसे देव होनेवाले इन्द्रादिकके ईश्वर हैं।
5. 9 ता णज्जइ इत्यादि-शहरमें स्वर्णवर्षा होनेके कारण लोगोंको रात और दिनके बीच भेद करना कठिन था। इसलिए लोग उस समयको दिनका समय मानते थे जब सरोवरमें कमल खिलते थे। ,
यह और इसके बादकी दो सन्धियाँ प्रथम वासुदेव त्रिपृष्ठ, प्रथम बलदेव (विजय) और प्रथम वासुदेव अश्वग्रीवकी कहानीका वर्णन करती हैं, जो जैन पौराणिक परम्पराके अनुसार हैं। पाठक त्रिपृष्ठ और विजयकी मित्रता और त्रिपृष्ठ तथा अश्वग्रोवकी शत्रुताकी पृष्ठभूमि समझ सकें, इसके लिए कवि तीनके दो पूर्वभवोंके जीवन का वर्णन करता है।
1. 5a गोउलपयधाराधायपहिइ-जहाँपर यात्री गायोंके दूधको जी-भर पी सकते हैं। 1la जइणी-जैनी, जो यहाँ व्यक्तिवाचक संज्ञा है। 15 खलमित्त सणेहु-दुष्ट आदमीके साथ मित्रता थोड़े समयके लिए रहती है।
2. 5a णिग्गेसइ ण वाय-शब्द बाहर नहीं निकलेंगे। यहाँ णिग्ग शब्द तथा 7b में मराठीके निघणे के समतुल्य है जिसकी व्युत्पत्ति निर्गमसे की जा सकती है।
3. 50 तरइ Swims-मूल 'तर' तैरना मराठी में सुरक्षित है, इसो अर्थमें प्राकृतमें एक और मूल शब्द तर है जिसका अर्थ समर्थ या योग्य होता है।
4. 16 वणुस्साहिलासं-होना चाहिए वणस्साहिलासं, उद्यान रखने की अभिलाषा । वणुस्स सभी पाण्डुलिपियोंमें मिलता है इसलिए इसे रहने दिया है अथवा क्या हम वण + उत्सुक + अभिलासं ले सकते है, जिसका अर्थ होगा वन रखनेकी तीव्र इच्छा। 126 तायाउ आराहणिज्जो-दादमें आदर करने योग्य । (पिताकी मृत्युके बाद), तुम भी मेरे पिताकी तरह समान आदर पाने योग्य हो।
5. 13 दुग्गु भणेवि-यह कहते हुए या सोवते हुए कि वृक्ष दुर्गके समान है ( दुग्ग )। वइरिउ-शत्रु ।
8. 6a छइउ ( छादितः) पराजित किया ।
9. 10 तुज्झ हसियह करमि समाणउं-मैं बराबर कर दूंगा। मैं उस हँसीका बदला दूंगा जो मेरा मजाक उड़ाती है और अपमान करती है।
___10. 8b अवरु-विशाखनन्दी।
LI 1. 6a जायासीधणतण-वे दोनों (विजय और त्रिपष्ठ) 80 धनुष बराबर ऊँचे हो गये । 96 बिहि पक्खहिं णं पुण्णिमवासरु-पूर्णिमाके दिनके समान जिसके एक ओर आधा उजला पक्ष है और दूसरी ओर अँधेरा पक्ष है। जो विजय बलदेवके समान है, जो गोरे हैं, और त्रिपृष्ठ वासुदेव जो श्याम वर्णके हैं।
2. 1lab हलहरु दामोयह-यहां कृपया याद रखिए कि बलदेव और वासुदेवका उल्लेख उनके विभिन्न पर्यायवाची नामोंसे होगा। जैसे सीरि, हलो, लंगलहर, सीराउह, बलदेवके नाम है। दामोदर, माधव, श्रीवत्स, अनन्त, सिरिरमणीस, लच्छीवइ ( लक्ष्मीपति), दानवारि, दानववैरिन्, विट्ठरसव, विस्ससेण वासुदेवका; इसी प्रकार अश्वग्रवका उल्लेख हयग्गीव, हयकण्ठ, तुरंगगलके रूपमें होगा।
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