Book Title: Mahapurana Part 3
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 531
________________ ४८४ १० १५ २० महापुराण जंबूदीव सुरोलि पुण्वविदेह व रे विउलि सुकच्छाजणवइ सिरिहरि सिरिणयरे । Jain Education International asकरालअसिधारातासिय सयलखलो पयपालो पुहईसो पोसियपुहइयलो । णिसिसमए दट्ठूणं उक्कं हल्हसियं वित्त समवे सुकियं तेण कियं । बारहविहतवचरर्णे इंदियमयहरणं मुक्काहारसरीरं सल्लेहणमरणं । जायर अच्चुयकप्पे अमरो मरिऊणं सग्गसिहरभवणाओ पुणु ओयरिऊणं । इह भर कासी वाणार सिणाहो आइदेवकुलतिलओ पहु पंकयणाहो । मज्झेखामा सामौ रामा तस्स सई जाओ देवो पोमो ताणं सुद्धमई । तीसवर सहसर धणुबावीसतणु यसंनिहियणरोहो पहु णं चरममणु । गंगासिंधूविओ साहियमहियमरो हिरयणालंकारो णवमो चक्कहो । घत्ता - पुहईसुंदरी मुहउ धीयउ ॥ असि विणीयउ || ११ || लिए शुभकर है ऐसी चक्रवर्ती कथाको सुनो। जम्बूद्वीप के सुमेरुपर्वतके श्रेष्ठ पूर्वविदेहके अत्यन्त विशाल कच्छावती देशमें लक्ष्मीको धारण करनेवाले श्रीनगर में प्रजापाल नामका पृथ्वीश्वर है जो बिजली के समान भयंकर असिधारासे समस्त शत्रुओंको त्रस्त करनेवाला है और पृथ्वीतलका पालन करनेवाला है । रात्रिके समय आकाशसे गिरते हुए तारेको देखकर उसने शिवगुप्त मुनिके समीप बारह प्रकारके तपके आचरणके द्वारा इन्द्रियोंके मदका हरण करनेवाला पुण्य किया तथा छोड़ दिया है आहार और शरीर जिसमें ऐसा सल्लेखना मरण किया । मृत्युको प्राप्त होकर वह अच्युत स्वर्ग में उत्पन्न हुआ । स्वर्गकै विमान शिखरसे अवतरित होकर वह पुन: इस भारतवर्ष के काशीदेश में वाराणसीका राजा हुआ - इक्ष्वाकुकुलका तिलक स्वामी पद्मनाभ | उसकी सती स्त्री सुन्दरी मध्यमें क्षीण थी । उनका शुद्धमति पद्म नामका पुत्र उत्पन्न हुआ । तीस हजार वर्षं उसकी आयु थी । बाईस धनुष उसका ऊँचा शरीर था । वह लोगोंको न्यायमें स्थापित करनेवाला मानो अन्तिम मनु था । जिसने गंगा और सिन्धु नदियोंको सिद्ध किया है, धरती और देवोंको सिद्ध किया है, जो निधियों - रत्नों और अलंकारोंसे युक्त है, ऐसा वह नौवां चक्रवर्ती था । घत्ता - उसकी पृथ्वीसुन्दरी प्रभृति कन्याएँ थीं जो आठों ही अत्यन्त विनीत कही गयी हैं ||११|| २. A सुरालए । ६. A सहसाऊ । ७. A सिद्धउ | ३. A विदेहि वरे । ४. A उक्कं उल्हसियं । [ ६७.११.३ For Private & Personal Use Only ५. A रामा सामा तस्स । www.jainelibrary.org

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