________________
महाकवि पुष्पदन्त विरचित
४७९
मालाओ कयजणदिहिं अमयरुहं सररुहसुहिं। भावभरियवम्महरसं अणिमिसमिहुणं रइवसं । धवलघडाणं जुयलयं हंसीचुंबियकुवलयं । पुलिणणिलीणबेलाययं सजलं कमलतलाययं। सरिरायं रसणारवं
मणिवीढं हरिभइरवं।' अच्छरणाइणिगेयए
इंदफणिंदणिकेयए। हरियं पीयं तंबयं
रयणाणं णिउरुंबयं । ठूणं मरजालियं
अग्गि जालामालियं । पडिबुद्धा परमेसरी
कहइ सपइणो सुंदरी। मई विइण्णलोयणरई दिट्ठा सिविणयसंतई।
घत्ता-तिस्सा तं फलं कहइ नृसारओ। _तुह होही सुओ देवि भडारओ ।।५।।
धरिही जो रयणत्तयं लहिही जो छत्तत्तयं डहिही जो णिभंतयं सोते होही डिंभओ अमरविलासणिसत्थओ
णविही जस्स जयत्तयं । जाइजरामरणत्तयं । जाही मोक्खमणंतयं । सुहिजणलग्गणखंभओ। पत्तो मंगलहत्थओ।
मालाएँ, जनोंका भाग्यविधाता चन्द्रमा और सूर्य जिसमें भावोंसे-।
कामदेवका रस भरा हुआ है ऐसा रतिवश मत्स्ययुग, धवल घड़ोंका युग्म, जिसमें कमल हंसिनियोंके द्वारा चुम्बित हैं, जिसके तटोंपर बगुले बैठे हुए हैं, ऐमा सजल सरोवर। गर्जनासे भयंकर समुद्र, सिंहासन (सिंहोंसे भयंकर मणिपीठ ), अप्सराओं और नागिनोंके द्वारा गाये गये स्वर्गलोक और नागलोक, रत्नोंका हरा-पीला और लाल समूह तथा पवनसे प्रज्वलित ज्वालाओंसे सहित आगको देखकर वह परमेश्वरी जाग गयी। वह सुन्दरो अपने पतिसे कहती है कि मैंने आंखोंमें रति उत्पन्न करनेवाले स्वप्नोंको देखा।
घत्ता-तब उसके लिए राजा उनका फल कहता है कि हे देवी, तुम्हारे आदरणीय पुत्र होगा । ॥५॥
जो रत्नत्रयको धारण करेगा, जिसे तीनों जगत् प्रणाम करेंगे। जो तीन छत्र प्राप्त करेगा, जन्म-जरा और मरण तीनोंका नाश करेगा, जो बिना किसी भ्रान्तिके अनन्त मोक्षको प्राप्त होगा। सुधीजनोंका आधारस्तम्भ वह तुम्हारा पुत्र होगा। मंगलद्रव्य हाथमें लिये हुए अमर ५. १.A वलालयं । २. A तडालयं । ३. A तस्सा । ४. AP णिसारओ। ६. १. A सो तव होही ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org