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महापुराण
[५७.२६.४
सिसुमृगणेयणइ पीवरथेणियइ वंदिउसो पडिगाहिउ गणियइ । दिण्णउ तासु भोज्जु जं चंगउं विडसाहुहि संपीणित अंगउं । सरसवयणु तहिं तेण णि उंजिउं. दड्ढउं चरियधण्णु जं पुंजिउं। रत्तु मुणेवि ताइ अवहेरिउ णारिहिं भुवणि कोण किर मारिउ । तो गुणवंतु ताम गरुयत्तणु
जाम ण लग्गइ मणसियमग्गणु । णिग्गउ गउ परिहेप्पिणु राउलु विसयालुद्धउ जायउ आउलु।
घत्ता-पलपाएं जाएं मिट्टएँण सूयारउ णिवमणि चडिउ ॥
- कय कामिणि दविणे तेण वस रिसि चारित्तहु परिवडिउ ॥२६।।
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मरिवि तुहारउ जायउ कुंजरु महु भासंतहु तिहुवणपंजरु । एहु एवहिं जाउ जाईभरु । तुहुं वि बप्प अप्पाणउ संभरु । ता रयणाउहेण णियतणयहु रज्जु समप्पिउ पयडियपणयहु । तासु जि गुरुहि पासि तउ चिण्णउं तहु मायाइ तं जि पडिवण्णउं । बिणि वि संतई मायापुत्तई अच्चुइ अणिमिसत्तु संपत्तई। अजयरु पंकप्पहरणयंतहु
णीस रियउ कह कह व कयंतहु। दारुणभिल्लहु सुउ अइदारुणु मंगिहि सवरिहि हुउ करिमारणु ।
तेण पियंगुदुम्गि अवलोइउ तउ तवंतु वजाउहु घाइउ । देता। अपने मित्रको छोड़कर वह उसके घर गया, मानो भ्रमर कमलपर गया हो। शिशुमृगनयनी स्थूल स्तनोंवाली उस वेश्याने उसकी वन्दना की, पड़गाहा और जो अच्छा भोजन था वह उस साधुको दिया। उस कपटी साधुका शरीर पीड़ित हो उठा। उसने उससे सरस शब्दोंमें बात की और जो संचित चारित्र धन था उसे खाक कर दिया। उसे अनुरक्त देखकर वेश्याने उसकी उपेक्षा को । स्त्रियोंके द्वारा संसारमें कौन नहीं मारा जाता ? मनुष्य तभी तक गुणवान् है और उसका बड़प्पन है कि जबतक उसे कामदेवके बाण नहीं लगते । वस्त्र पहनकर वह निकल गया और राजकुलके लिए गया ।' विषयोंका लोभी वह आकुल हो उठा।
घत्ता-मीठा मांस पकानेके कारण वह रसोइया राजाके मनमें चढ़ गया। धन देकर उस वेश्याको वश में कर लिया, और वह मुनि चारित्रसे भ्रष्ट हो गया ॥२६॥
वह मर कर तुम्हारा हाथी हुआ। मेरे द्वारा त्रिलोकका ढांचा बताये जानेपर इसको इस समय जाति स्मरण हुआ है। हे सुभट, तुम भी अपनी याद करो। तब विनय प्रकट करनेवाले अपने पुत्रको रत्नायुधने राज्य सौंप दिया, और उन्हीं गुरुके पास तप ग्रहण कर लिया। उसकी माताने भो तप ग्रहण कर लिया। दोनों शान्त माता और पुत्र अपलकमात्रमें अच्युत स्वर्ग पहुँच गये। अजगर भी पंकप्रभा नरकमें युद्ध करते हुए, नरकभवका अन्त करते हुए दारुण भील और मंगी भीलनीसे हाथियोंको मारनेवाला अत्यन्त भयानक पुत्र हुआ। उसने प्रियंगु द्रुमके नीचे तप
४. AP'मिगणयणइ । ५. AP पणिइ । ६. A ताइ । ७. AP गुरुयत्तणु । ८. A सिट्ठएण । २७. १. APT जाईसरु । २. A रयणाहिवेण । ३. AP पासु । ४. AP अजगरु ।
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