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-५९. १३. २३ ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित
३५१ को एत्थु सामि कहु तणिय भूमि । कुलभूसणम्मि सिरिसासणम्मि। भणु लिहिय कासु बलु जासु तासु। इय वजरंत अमरिसफुरंत। आउहई लेवि अभिट्ट बे वि। . ते वरणरिंद
पडिहरिउविंद । कयरोलियाउ दाढालियाउ। पिंगच्छियाउ बीहच्छयाउ। फणिकंकणाउ
लंबियथणाउ। उक्केसियाउ रिउपेसियाउ। बहुरूविणीउ सुरकामिणीउ। कण्हें हयाउ णासिवि गया। परणिकिवेण करिउरणिवेण । चालिवि गुरुक्कु उम्मुक्कु चक्कु । आरालिफुरिउ . कण्हेण धरि । दाहिणकरेण णं गहवरेण । कसणेण तंबु णवभाणुबिंबु ।
पुणु भणिउ पिसुगु महुकील णिसुणु । घत्ता-रे रे रिउकुंजर दढदीहरकर सीरिहि सरणु पढुक्कहि ॥
एवहिं असिजीहहु महुँ णरसीहहु कमि पंडियउ कहिं चुकहि ॥१३॥ उस दामोदरने कहा- “यहाँ कोन स्वामी है, और किसकी भूमि है ? बताओ कुलभूषण किसके श्री-शासनमें धरती लिखी हुई है ? जिसके पास बल है, धरती उसकी। (जिसकी लाठी उसकी भैंस)," यह कहते हुए तथा अमर्षसे विस्फुरित होते हुए नारायण और प्रतिनारायण वे दोनों श्रेष्ठ नर हथियार लेकर लड़ने लगे। जिसने भयंकर शब्द किया है, जो दाढ़ोंसे युक्त है, जो पीली
और भयंकर आँखोंवाली, नागों, वलय पहने हुए लम्बे स्तनोंवाली तथा उठे हुए बालोंवाली। शत्रुके द्वारा प्रेषित, ऐसी वह बहुरूपिणी देवविद्या कामिनी, नारायणके द्वारा आहत होकर भाग गयी। तब शत्रुके लिए निर्दय, गजपुरनरेश मधुकोड़ने चलाकर भारी चक्र छोड़ा। आराओंसे स्फुरित उस चक्रको कृष्णने अपने दायें हाथसे इस प्रकार पकड़ लिया मानो काले ग्रहवरने
हने ) लाल-लाल नव-भानुबिम्ब पकड़ लिया हो। नारायणने कहा-“हे दुष्ट मधुक्रीड़, सुन ।
- पत्ता-हे दृढ़कर शत्रुगज, तुम बलभद्रको शरणमें आ जाओ। इस समय तलवार जिसकी जीभ है, ऐसे मुझ जैसे नरसिंहके चरणोंमें पड़े हुए तुम कैसे बच सकते हो"॥१३॥
२. A अमरिसु । ३. AP बीहच्छियाउ । ४. A उक्कोसियाउ । ५. AP परिमुक्कु । ६. P वरसीहह । ७. A कमपडियउ ।
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