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-६१. १५. ६ ] ___ महाकवि पुष्पदन्त विरचित
पुच्छिउ सिद्धत्तणु कम्मि कालि होसइ रिसि भणइ भवंतरालि। चोत्थइ णित्थरह भवद्धिणोरु तं सुणिवि कण्ण विहुणिवि सरीरु। आउच्छिवि हरि बल बे वि ताय वंदिवि सुव्वयसंजइहि पाय । णिवकुमरिहिं सहुं सत्तहिं सएहिं पावज लइय भूसियवएहिं । एयारहमइ दिवि सुहणिहाणि सुरवरु हूई प्रोणावसाणि । केसवु महि मुंजिवि कम्मणडिउ रयणप्पहवसुहाविवरि पडिउ । सुउ रजि थवेवि अणंतसेणु जसहरगुरुचरणंबुरुहि लीणु । तउ चरिवि सीरि विहडियकसाउ सोलहमइ सग्गि सुरिंदु जाउ । घत्ता-पिउ जायउ जो उरयाहि वइ तासु पासि दंसगरयणु ।। पावेप्पिणु णरयहु णीसरिउ सो अणवीरियउ पुणु ॥१४।।
१५ भरह म्मि एत्थु विजयाचलिंदि उत्तरसेढि हि धवलहररुंदि । णहवल्लहपुरि घणबाहु राउ घणमालिणिवरकंतासहाउ। घणवण्णउ जायउ ताहं पुत्तु घणणाहु णाम णवणलिणणेत्तु । सो सयलखयरखोणीवईसु मंदरणंदणवणि णमियसीसु । पण्णत्तिविज संसाहमाणु अच्चुयणाहें बोहिउ सणाणु । सम्मत्तु लएप्पिणु तिमिरणासु णिक्खंतु सुरामरगुरुहि पासु।
बताया कि चौथे जन्मान्तरमें संसाररूपी समुद्रके जलसे तुम लोग तर जाओगी। यह सुनकर कन्या ( सुमति ) अपना शरीर कंपाती हुई, नारायण और बलभद्र पितासे पूछकर, सुव्रता आयिकाके चरणोंको प्रणाम कर व्रतोंसे भूषित सात सौ राजकुमारियोंके साथ प्रवजित हो गयी। प्राणोंका अन्त होनेपर वह सुखके निधान ग्यारहवें स्वर्गमें देव हुई। कर्मोंसे प्रतारित केशव, नारायण, रत्नप्रभा नामक नरकमें गया। अपने पुत्र अनन्तसेनको राज्यमें स्थापित कर यशोधर महामुनिके चरणकमलोंमें लोन होकर और तपश्चरण कर विघटित कषाय श्री बलभद्र सोलहवें स्वर्गमें
पत्ता-उनका पिता स्मितसागर धरणेन्द्र हुआ। उसके पाससे सम्यग्दर्शनरूपी रत्न पाकर अनन्तवीर्य नरकसे पुनः निकला ||१४||
इस भरत क्षेत्रमें विजया पर्वतकी उत्तरश्रेणीमें धवल गृहोंसे विशाल नभवल्लभ नगरमें मेघमालिनी नामक सुन्दर कान्ता जिसकी सहायक है, ऐसा मेघवाहन नामका विद्याधर राजा था । वह ( अनन्तवीर्यका जीव ) उन दोनोंका मेषके समान वर्णवाला तथा नवनलिनके समान नेत्रवाला मेघनाद नामका पुत्र हुआ। समस्त विद्याधर भूमिका स्वामी मेघनाद मन्दराचलके नन्दनवनमें सिर झुकाये हुए प्रज्ञप्ति विद्या सिद्ध कर रहा था। अज्ञानी उसे अच्युतेन्द्रने सम्बोधित किया। तिमिरके नाशक सम्यक्त्वको लेकर और देव तथा अमरोंके गुरुके पास संन्यास लेकर,
१४. १. A नृवकुमरिहिं; P णिवकुअरिहिं । २. AP पाणावसाणि । ३. P जसहरचरणंबुरुहे णिलोणु ।
४. AP दंसणु रयणु । ५. P वोरिउ । १५. १. A वण्णिउ । २. A पण्णत्त । ३. P अणाणु; K अणाणु but corrects it to सणाणु ।
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