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-६६. ६.९]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित कुसपवित्तयंकियकरंगुली
कोसलं पुरं पत्तओ बली। सहयरेहिं सह लच्छिमाणणो वेयघोसबहिरियदिसाणणो । दाणमंडवं खणि पइट्ठओ
तं णिउत्तमणुएहिं दिट्ठओ। तेहिं तस्स विऊण णीरयं
पायपोमपक्खालणं कयं । आसणे णिविट्ठस्स णिम्मलं णीलदभखंडं पुणो जलं । पत्ता-पुणु अहियारिएहिं ढोएप्पिणु मिट्ठउ भोयणु ।।
दसणुकेरु तहु दक्खालिउ जायउ ओयणु ॥५॥
जं दंत जाय णवकलमसित्थ तं उद्विय भड रणभैरसमत्थ । हणु हणु भणंत करफुरियखग्ग बालहु अखत्तधम्मेण लग्ग। परमेसरु ते णउ गणइ केव
कंठीरउ वणि गोमाउ जेव । जो दसणपुंजु तं कूरु जाउ तं जोयइ णं णियजसणिहाउ । उट्ठिवि दिटिइ चप्परिय सम्व . गय णासेप्पिणु भड गलियगव्व । विण्णविउ तेहिं पहु परसुधारि भो पुहइशाह रिउ जीवहारि । आएसपुरिसु संपत्तु भीम
तं णिसुणिवि णिग्गउ इंदरामु। सपसाहणेण हरिवाहणेण
संणज्झिवि लहु सहुँ साहणेण । आवंतु दिट्ट बाले अणेण
भुयदंड तुलिय हरिसियमणेणे । लाल वस्त्रसे शोभित है, जिसकी अंगुलियां दर्भमुद्रिकासे अंकित हैं, ऐसा वह वोर धुरन्धर और बलवान् अयोध्या नगरी पहुंचा। लक्ष्मीको माननेवाला वह अपने सहचरोंके साथ वेदोंके घोषसे दिशामुखोंको बहरा बनाता हुआ एक क्षणमें दानमण्डपमें प्रविष्ट हुआ । वहां नियुक्त मनुष्योंने उसे देखा। उन्होंने उसे प्रणाम कर उसके चरणकमलोंका धूलरहित प्रक्षालन किया और आसनपर बैठे हुए उसे निर्मल हरा दर्भखण्ड ( दूब खण्ड ) और जल दिया।
घता-फिर अधिकारियोंने मीठा भोजन देकर उसे दांतोंका समूह दिखाया, वह भात बन गया ॥५॥
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जब दांत नये चावलोंकी तरह सीज गये तो रणभारमें समर्थ योद्धा उठे। जिनके हाथमें ! तलवारें चमक रही हैं, ऐसे वे मारो-मारो कहते हुए क्षात्रधर्मको ताक पर रखते हुए वे बालकके पीछे लग गये। लेकिन वह परमेश्वर उन्हें उसी प्रकार कुछ नहीं समझता कि जिस प्रकार सिंह वनमें शृंगालोंको कुछ नहीं समझता। जो वह दांतसमूह भात हो गया था उसे वह अपने यशसमूहके समान देखता है। उठकर उसने दाष्टसे उन्हें हटा दिया। गलितगवें सभी योद्धा भागकर चले गये। उन्होंने फरसा धारण करनेवाले अपने स्वामोसे निवेदन किया, "हे पृथ्वीनाथ, शत्रु जीवका हरण करनेवाला है। भयंकर आवेगपुरुष है।" यह सुनकर इन्द्रराम निकला। अपने प्रसा
४. AP णमिऊण । ५. A आसणोपविट्ठस्स । ६. A णीलडब्भ । ६. १.A भड समत्थ । २. P अक्खतषम्मेण । ३. AP तहिं करु । ४.A चप्परिवि । ५. A adds
after this: बोल्लिउ पडिमडछडभंजणेण । .
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