Book Title: Mahapurana Part 3
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 519
________________ ४७२ महापुराण [६६.८.३राएं पडिवण्णउं वयणु तासु भणु मुवणि ण दुकाइ णियइ कासु । णिउ णरपरमेसरु तेण तेत्थु करिमयरभयंकरु जलहि जेत्थु । जीहिं दियविसयेवसेण खविउ तहिं सिहरि सिलायलि णिवइ थविउ । चट्टयविहत्थु रोसेण फुरिउ ' सूयारवेसु देवेण धरिउ। पभणिउ मई जाणहि किं ण पाव खलवयणणडिय रे कूरभाव । चिंचिणिहलस्थि दप्पिट्ट दुहूँ हउँ पई जम्मतरि णिहउ कह। इय कहि वि तेण सयखंडु करिवि मारिउ गउ णरयहु भउमु मरिवि । घत्ता-गोत्तमु वज्जरइ मगहाहिव चारु चिराणउं॥ अण्णु वि णिसुणि तुहुं बलणारायणहं कहाणउं । ८॥ इह खेत्ति णिसेविवि जइणमग्गु दो पत्थिव गय सोहम्मसग्गु । तहिं एक्कु सुकेउ सेहुँ ससल्लु किं वण्णमि मूढेउ मोह गिल्लु । इह भारहंति संपुण्णकामु चकैउरिणाह वरसेणु णामु। इक्खाउवंसगयणयलि चंद . दाणोल्लियकरु णं सुरकरिंदु। तह देवि पढम पिय वइजयंति _लच्छिमइ बीय णं ससिहि कति । जइयतुं सुभउमि मुइ जाणियाहं छहसयसमकोडिहिं झीणियाहं । तुम्हारे देखनेसे वे त्रस्त हो उठते हैं। नहीं तो वे दूसरे धरतीमण्डलमें क्यों निवास करते ? राजाने उसका कहा स्वीकार कर लिया। बताओ संसारमें किसकी नियति ( अन्त ) नहीं आती। उसके द्वारा वह नरपरमेश्वर वहां ले जाया गया कि जहां हाथियों और मगरोंसे भयंकर समुद्र था। जिह्वा इन्द्रियके विषयरूपी विषसे नष्ट वह राजा पहाड़की एक चट्टानपर स्थापित कर दिया गया। देवने जिसके हाथमें करछुली है ऐसा रसोइयेका रूप धारण कर लिया और क्रोधसे तमतमाया। वह बोला-“हे पाप, तू मुझे नहीं जानता। दुष्टोंके वचनोंसे प्रतारित हे दुष्टभाव, चिंचणो फल ( इमली ) के अर्थी दर्पिष्ठ और दुष्ट कठोर जन्मान्तरमें मैं तेरे द्वारा मारा गया।" यह कहकर उसने सौ टुकड़े कर उसे मार डाला । सुभौम मरकर नरकमें गया। घत्ता-गौतम कहते हैं-हे मगधराज, एक और सुन्दर और पुराना बल तथा नारायणका कथानक है, उसे सुनो ||८|| इस भरत क्षेत्रमें जैनमार्गका पालन कर दो राजा सौधर्म स्वर्ग गये। उनमें एक सुकेतु था जो शल्य सहित था। मोहग्रस्त उस मूर्खका क्या वर्णन करूं ? इस भारतमें चक्रपुरमें सम्पूर्णकाम वरषेण नामका राजा था। वह इक्ष्वाकुवंशरूपी आकाशतलका चन्द्र था, दान (जल और दान) से आर्द्रकर (हाथ और सूंड़) वाला जो मानो ऐरावत गज था। उसकी पहली प्रिय पत्नी वैजयन्ती थी तथा दूसरी चन्द्रमाकी कान्तिके समान मानो लक्ष्मीवती थी। सुभोमके मरनेपर जब ज्ञात ८. १. A वडिवण्णउं । २. AP विसयविसेण । ३. A चड्डवविहत्थु; P चद्दअविहत्थु । ४. A दुट्ठ । ५. A कट्ठ। ९. १.A मुउ । २. A मोहें मूढगिल्लु । ३. A चक्कउरणाहु । Jain Education International For Private & Personal Use Only. www.jainelibrary.org

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