________________
४७३
-६६.१०.७]
महाकवि पुष्पदन्त विरंचित तइयतुं संचुउ सोहम्मदेउ हुउ पुत्तु जयंतिहि सोक्खहेउ । अण्णेक्कु लच्छिमइयहि ससल्लु किं वण्णमि अप्पडिमल्लमल्ल । तहिं एक्कु पकोक्किउ णंदिसेणु अण्णेक्कु वि दुत्थियकामधेणु । णामई हक्कारिउ पुंडरीउ
किं थुणमि वइरिमृगपुंडरीउ । ते बेण्णि वि णीलसुपीयवसण ते बेणि वि भायर धवलकसण । दोहं मि विच्छिण्णउ आवयाउ दोहं मि घत्ता-सीरिहि साहियइं छप्पण्णसहासइं वरिसह ।।
चकिहि णाहियई परमाउसु एंवे सुपुरिसह ॥९॥
कोसि संसिउ देवयाउ।
१०
छन्वीसचाव देहहु पमाणु
तहिं ताहं पहुत्तणु जाणमाणु । इंदरि णरिंदु उविंदसेणु
जो देवहिं गेजइ धरिवि वेणु । तहु तेण धीय दामोयरासु
पोमावइ दिण्ण कयायरासु । तं हरहुं पराइन पहु णिसुंभु चिरभवि सुकेउ सो रिउणिसुंमु । जायउं रण विज्जहि लग्ग बे वि अवरोप्परु णउ सकिय हणेवि । पडिहरिणा घल्लि उ धगधगंतु धरियउं कण्हेण रहंगु एंतु ।
तेणाहउ उरयलि पडिउ वेरि अइभीसणु कयधम्मावहेरि । छह सौ करोड़ वर्ष बीत गये तो सौधर्म देव च्युत होकर वैजयन्तीका पुत्र हुआ जो सुखका कारण था। दूसरा जो सशल्य था, वह लक्ष्मीमतीसे जन्मा। अप्रतिम मल्लोंके मल्ल उसका मैं क्या वर्णन करूं। उनमेंसे एकको नन्दिषेण कहा गया और दूसरेको जो दुःस्थितों (विपत्तिग्रस्तों) के लिए कामधेनु था, पुण्डरीक नामसे पुकारा गया। शत्रुरूपी हरिणोंके लिए पुण्डरीक (व्या समान था, उसकी मैं क्या स्तुति करूं? वे दोनों ही नील और पीत वस्त्रवाले थे। वे दोनों ही भाई गोरे और काले थे। दोनोंने आपत्तियोंको तहस-नहस कर दिया था। दोनोंको विद्याएँ सिद्ध थीं।
घत्ता-श्री बलभद्र नन्दिषेणकी आयु छप्पन हजार वर्ष कही गयी है। चक्रवर्ती पुण्डरीककी आयु भी इससे अधिक नहीं थी, इस प्रकार दोनों सुपुरुषोंकी यह परमायु थी ॥९||
१०
है
आ
दोनोंके शरीरका प्रमाण छब्बीस धनुष था। वहाँ उनका प्रभुत्व भी ज्ञातमान था। इन्द्रपुरीका राजा उपेन्द्रसेन था। जिसका देवों द्वारा वेणु लेकर गान किया जाता था । किया गया
र जिसका ऐसे उग्र दामोदर (पण्डरीक) को उसने अपनी कन्या पद्मावती दे दी। पूर्वभवमें शत्रुओंका नाश करनेवाला जो सुकेतु राजा था, ऐसा निशुम्भ राजा (चक्रपुरका ) उसका अपहरण करने के लिए आया। दोनोंमें युद्ध हुआ, वे विद्याओंसे लग गये। वे एक-दूसरेको मारने में समर्थ नहीं हो सके। प्रतिनारायण निशुम्भने धकधक करता हुआ चक्र चलाया। आते हुए उसे नारायग पुण्डरोकने पकड़ लिया। उससे वक्षःस्थलमें आहत होकर अत्यन्त भयंकर और धर्मकी
४. AP अण्णेक्कू वि लच्छिमइहि। ५. AP अप्पडिमल्लु । ६. AP मिग । ७. AP read a as b and basa. ८. P संछिण्णउ । ९. AP एउ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org