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महापुराण
[ ६७. १. १२
सोउं जस्स सुआमयं हंतूणं मोहामयं । पुरिसा णिक्कलधामयं पत्ता णाणसुधामयं । आयंबुज्जलकरणहं
भयवंतं णियकरणहं। णिम्मलत्तणिरसियणहं तं मझिं णमिण हैं। वोच्छं तस्सेव य कहं इयरह मोक्खविही कह । घत्ता-पढमइ दीवइ सुरगिरिपुवइ ।।
कच्छादेसइ सोहादिवइ ॥१॥
वीयसोयणयरेसरो
राया रूवी विव सरो। धीरो जियपरमंडलो विहवेणं आहंडलो। कोसेणं वइसवणओ णामेणं वइसवणओ। अण्णस्सि दियहे घणं गंतूणं कीलावणं । पंकेरुहरयधूसरो
रमइ जाम पुहईसरो। ताम पवासियदिहिहरो सुरधणुमंडियजलधरो। थोरथेभैथिप्पिरणहो पच्छाइयदसदिसिवहो । फुल्लियफुडयकयंबओ वियसावियदालिंबओ। णीरपूरपूरियधरो
किडिकरडीण सुहंकरो। पत्तो वासारत्तओ
दूरं कंको मत्तओ। णच्चावियसिहि उलणडो विज्जुजलणजलिओ वडो। हैं, जिनके श्रुतरूपी अमृतको सुनकर, मोहरूपी व्याधिको नष्ट कर लोग ज्ञानरूपी सुधासे युक्त निष्कलधाम ( मोक्ष ) को प्राप्त हुए हैं, जिनके हाथोंके नख लाल और उज्ज्वल हैं, जो ज्ञानवान्
और अपनी इन्द्रियोंका घात करनेवाले हैं, जिन्होंने निर्मलतामें आकाशको तिरस्कृत कर दिया है ऐसे उन मल्लिनाथको मैं नमस्कार करता हूँ और उन्हींकी कथाको कहता हूँ।
घत्ता-प्रथम जम्बूद्वीपके सुमेरुपर्वतकी पूर्व दिशामें शोभासे दिव्य कच्छदेशमें ||१||
. वीतशोक नगरका स्वामी राजा (वैश्रवण ) कामदेवके समान सुन्दर था। धीर और शत्रुमण्डलको जीतनेवाला जो वैभवमें इन्द्र, धनमें कुबेर और नामसे वैश्रवण था। दूसरे दिन सघन क्रीड़ावनमें जाकर कमलपरागसे धूसरित वह राजा क्रीड़ा करता है तो इतने में प्रवासियोंके धैर्यका हरण करनेवाला जिसमें इन्द्रधनुषसे मेघ मण्डित हैं, आकाशसे बड़ी-बड़ी बूंदें गिर रही हैं, दसों दिशापथ आच्छादित हैं, जिसमें कदम्ब वृक्ष विकसित और पुष्पित हैं, जिसने कुकुरमुत्तोंको विकसित कर दिया है, जलोंसे धरती प्लावित है, जो सुअरों और गजोंसे सुन्दर है ऐसी वर्षाऋतु आ गयी, बगुले दूर हो गये हैं। जिसने मयूरकुलरूपी नटोंको नचाया है ऐसा वटवृक्ष
५. A णविऊण ।
२. १. A रायं रूवें जियसरो। २. AP वीरो । ३. AP अण्णेसं । ४. AP°जलहरो। ५. AP°थिभ ।
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