Book Title: Mahapurana Part 3
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 517
________________ १० महापुराण जइ अस्थि को वि सुक्कियपहाउ तई एउ जि पहरणु मज्झु होउ। इय चिंतिवि तेण सुकम्मवाउ तं दंतकूरपरिउ सराउ । भामिउ णहि जायउ णिजियकु आरासहासविप्फुरियउ चक्कु । घत्ता-रिसिसुउ तेण हउ मारिउ गउ णरयणिवासहु ।।। दुग्गइ सावडइ सव्वहु वि लोइ कयहिंसहु ॥६॥ दुइसय'कोडिहिं वरिसह गयह अरतित्थे राउ सुभोमउ रामाकामउ हुई सुत्थे । माणु मलेप्पिणु ढुट्टहं घिट्टहं दुजणहं हित्तई छत्तई चमरई चिंधई बंभणहं । रहजपाणई पिउसंताणई लद्धाइं चउदहरयणई णव वि णिहाणइं सिद्धाई । छक्खंड वि महि जयलच्छीसहि भुत्त किह ___ असिणा तासिवि णाएं भूसिवि दासि जिह । एक्कहिं वासरि उग्गइ दिणयरि उत्तसिउ १० विरइयभोयणु अमयरणायणु भाणसिउ । धन सहित अश्व वाहन और सेनाके साथ शीघ्र सन्नद्ध होकर उसे आते हुए इस बालकने देखा। हर्षित मन होकर उसने अपने बाहु तोले ( उठाये )। यदि मेरा कोई पुण्य प्रभाव हो तो मेरा यही एक अस्त्र हो-यह विचारकर उसने सुकर्मके पाककी तरह उस दांतोंरूपी भातसे भरे सकोरेको घुमा दिया। सूर्यको जीतनेवाला तथा सैकड़ों आराओंसे विस्फुरित चक्र आकाशमें उत्पन्न हो गया। पत्ता-उससे उसने शत्रुपुत्रका काम तमाम कर दिया। वह नरकनिवासमें गया। हिंसा करनेवाले सभी लोगोंके लिए लोकमें नरकगति मिलती है ॥६॥ अरनाथके प्रशस्त तीर्थके दो सौ करोड़ वर्ष बीतनेपर स्त्रियोंको चाहनेवाला सुभोम नामका चक्रवर्ती हुआ। दुष्ट, ढीठ और दुर्जन ब्राह्मणोंका मान मर्दन कर उनके छत्र-चमर और चिह्न छीन लिये गये । उसे रथ जम्पान और पिताको परम्परा प्राप्त हुई तथा चौदह रत्नों और नव निधियां सिद्ध हई। विजयलक्ष्मीकी सखी, छह खण्ड धरतीको तलवारसे त्रस्त कर तथा न्यायसे भूषित कर इस प्रकार उपभोग किया जैसे वह दासी हो । एक दिन सूर्योदय होनेपर ६. A तइ एउ; P ता एउ । ७. A सकम्मवाउ । ८. A दंतंतकर । ९. AP विप्फुरिउ । ७. १. A दुइसय वरिसहं गइयह कोडिहिं; P दुइसय वरिसहं कोडिहिं गइयहं । २. AP सुभउमउ । ३. A हुवउ सुतित्थे; P हुआ सत्थे। ४. AP चिट्ठहं दुट्ठहं । ५. A चमरई छत्तई चिंधई; P चमरई चिंघई छत्तई। ६. जाणई सयणई लद्धाई। ७. P अमिय । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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