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-६२.९. ११ ]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित इहुँ रम्मु एउ णइणारिवर
णरकंत एह पवहइ अवर । इहु रुम्मिधराहरु पुंडरिउ
सरु एत्थु देव पाणियभरि । ___ घत्ता-बुद्धिदेवि इह अच्छइ जगि माणउ जो पेच्छइ ।।
जिणवरसेवासिद्धउं तेण णयणफलु लद्धउं ॥८॥
णिव खेत्तु हिरण्णवंतु णियहि सोवण्णकूलसरिजलु पियहि । रुप्पयकूल वि इह एम गय। जहिं कुद्धहि सीहहिं हत्थि हय । सो एहु सिहरिगिरि सिहरपिउ सरु एत्थु महापुंडरिउ हिउ । लच्छीदेविहि रुच्चइ रमइ
ओहच्छइ इह वासरु गमइ। रत्तारत्तोयसरिहिं सहि
अइरावउ एउं खेत्तु कहिउं । फुल्लियतरुमालापरिमलई
वैरिसंति मेह धाराजलई । पिञ्चंति कलमकयलीहलई
णचंतमोरपिच्छुजलई। कच्छाइयाई विसयंतरई
खेमाइयाई जयरइं वरई। दरिसंति अमर जोयंति पर विम्हइयहियय कंपवियकर । पत्ता-कंदररिकीलियसुर जोइवि णाणागिरिवर ।।
अकयई मणियरतंबई वंदिवि जिणपडिबिंबई ॥९॥ यह कीर्तिदेवीके साथ दिखाई देते है, यह रम्यक पर्वत है। यह श्रेष्ठ नारी नदी है और यह दूसरी नरकान्ता नदी बहती है। यह रुक्मी महीधर है, यह पुण्डरीक नामका हे देव, जलसे भरा हुआ सरोवर है।
घत्ता-यहां बुद्धिदेवी है, जो विश्वके मानको देख लेती है। उसने जिनवरकी सेवासे सिद्ध नेत्रोंके फलको प्राप्त कर लिया है ।।८।।
हे नृप, यह हैरण्यवत क्षेत्र देखो। और स्वर्णकूला नदीका जल पियो। यह रूप्यकूला नदो इस प्रकार बहती है, जहां क्रुद्ध सिंहोंके द्वारा हाथी मारे जाते हैं ? यह वह, शिखर प्रिय शिखरो पर्वत है। यह महापुण्डरीक सरोवर है, जो लक्ष्मीदेवीके द्वारा चाहा जाता और रमण किया जाता है। यहां रहकर वह अपने दिन व्यतीत करती है ? रक्ता रक्तोदा नदियोंके साथ यह ऐरावत क्षेत्र कहा जाता है। जहां मेघ खिली हुई वृक्षमालासे सुगन्धित धाराजलोंकी वर्षा करते हैं। जहां धान्य और कदली फल पकते हैं। अपने पक्षोंसे सुन्दर मयूर नाचते रहते हैं। जिसमें कच्छादि देशान्तर और क्षेमादि नगर हैं। देवता लोग दिखाते हैं और मनुष्य विस्मित हृदय तथा अपना हाथ हिलाते हुए देखते हैं ।
पत्ता-जिसके पहाड़ोंकी घाटियोंमें देव क्रीड़ा करते हैं ऐसे नाना गिरिवरोंको देखकर तथा अकृत्रिम मणिकिरणोंसे लाल जिन प्रतिमाओंकी वन्दना कर ॥९||
१५. AP पह, probably is confounded with ए । १६. A रम्मि । १७. AP एह । ९. १. A वरिसंत । २. A जलधाराई । ३. A केली । ४. AP णच्चंति । ५. P°पिछज्जलई । ६. P
दरिसंति य अमर । ७. P विभइयं । ८. A दरकेलिय।
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