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महापुराण
[ ६५. १. ११
दिण्णं जेणं अभयपयाणं
सासयसिवणयरस्स पयाणं । भवहंतारं धीरं हतं
णमिउं देवं अरमरिहंतं । तस्स भणामि चरित्तं चित्तं । जणियसुरासुरविसहरचित्तं । घत्ता-जंबूदीवइ सुरगिरिपुष्वदिसासियइ ।।
पुवविदेहइ पविउलि केवलिभासियइ ॥१॥
सीयहि उत्तरकूलि रवण्णइ कच्छाणामदेसि वित्थिण्णइ । खेमणयरि धणवइ पुहईसरु रूवे रमणीसरु वम्मीसरु । गंदणाहतित्थयरसमीवइ
बुज्झिवि धम्मु णाणसम्भावइ । अप्पउं तेण णिओइउ राएं समैणु हवेप्पिणु मणवयकाएं । चत्तकुपंथें जाणियसत्थे
किउ पाओवगमणु परमत्थे । जाउ जयंताणुत्तरि सुरवरु कायमाणु तहु एकु जिकिर करु । आउ तासु तेत्तीसमहोयहि लोयणाडि सो पेक्खइ सावहि । तप्पमाणवि किरियातेएं
वीरिएण संजुत्तु अमेएं। मुंजंतहु सुहुं अहमिदोणउं आउहि थिउ छम्मासपमाणउं । पत्ता-सोहम्माहिउ भ०वहु जिणपयरयमइहि ॥
तहिं कालिहिं आहासइ सुरवइ धणवइहि ।।२।। वक्ता हैं, जिन्होंने अभयको प्रदान और शाश्वत शिवनगरको प्रयाण किया है, ऐसे संसारका नाश करनेवाले धीर अरहनाथ अर्हन्तको नमस्कार कर उनके सर. असर और विषधरोंके आश्चर्य उत्पन्न करनेवाले विचित्र चरित्रको कहता हूँ।
घत्ता-जम्बूद्वीपके सुमेरुपर्वतकी पूर्व दिशा केवलीके द्वारा भाषित विशाल पूर्वविदेहमें ॥१॥
सीता नदीके उत्तरीतटपर फैले हुए सुन्दर कच्छ नामके देशके क्षेमनगरमें धनपति नामका राजा था। रूपमें जो स्त्रियोंका स्वामी और कामदेव था, वह अर्हन्नन्दन तीर्थंकरके समीप धर्म समझकर उस राजाने ज्ञानके स्वभाव में अपनेको नियोजित कर लिया। मन वचन कायसे श्रमण होकर, खोटे मार्गको छोड़कर और शास्त्रको जानकर उसने परमार्थ भावसे प्रायोपगमन किया। वह जयन्त विमान देव पैदा हुआ। वहां उसके शरीरका प्रमाण एक हाथ था। उसकी आयु तैंतोस सागर प्रमाण थी। अवधिज्ञानी वह लोकनाडीको देख सकता था। सन्तप्तमान विक्रिया ऋद्धिके तेज और वीर्यसे संयुक्त सुखको विना किसी मर्यादाके भोगते हुए उस अहमेन्द्रकी आयु छह माह शेष रह गई।
पत्ता-तो उस अवसरपर सौधर्म इन्द्रने जिनपदमें जिसकी मति अनुरक्त है, ऐसे भव्य कुबेरसे कहा ॥२॥
३. A तेणं । ४. AP वीरं । २. १. A बुज्झवि णाणु धम्म । २. AP णिओविउ । ३. AP सवणु। ४. AP पायोगमरणु। ५. AP
अहमिदाणं । ६. A पवाणं; P पमाणं । ७. AP तहि जि कालि आहासइ ।
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