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महापुराण
[ ६५.७.१
अवरहइ अंबयतलि थक्कर
छट्टववासि मोहें मुक्कउ । जायउ केवलि केवलदंसणि आयउ भेसइ अंगौरउ सणि । धरणु वरणु ससि तरणि धणेसरु पवणु जलणु भावेण सुरेसरु । थुणइ अणेयहिं थोत्तपउत्तिहिं समवसरणु किउ विविहविहत्तहिं । तेत्थु णिसण्णएण तं सिट्टाउ
जं अवरेहिं मि देवहिं दिट्ठउ । चउ णिरूवि अज्जीव पयासिय रूविखंधदेसाइ वि भासिय । मग्गणगुणठाणाई समासिय जीव सकाय अकाय वि दरिसिय । सत्तपंचणवछविहभेयई
एयई अवरई कहियई णेयई। तहु संजाया तहिं मउलियकर गणहर तीस रिद्धिबुद्धीसर । गणमि दहुत्तर वम्महदमणहं तिण्णि तिणि सय सिक्खुय सँवणहं । घत्ता-पंचेतीसंसहसइं भणु अट्ठसयई कियइं॥
तीसणिउत्तई जाणसु मुणिहिं वयंकियई ॥७॥
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एत्तिये ओहिणाणि तहु हयकलि जिणवरचरणुण्णामियसीसइं मणपज्जयधरा वरचरियह
दुसहस वसुसय साहिय केवलि । दोसहसई पणवण्णविमीसइं। चउसहसई तिसयई विक्किरियहं ।
अपराह्न में आम्रवृक्षके नीचे स्थित हो गये और छठे उपवासके द्वारा मोहसे मुक्त हो गये । केवलदर्शनी वह केवली हो गये। बृहस्पति, मंगल, शनि, धरण (नागकुमारोंका इन्द्र), वरुण, शशि, सूर्य, धनेश्वर (कुबेर), पवन, अग्नि और इन्द्र भावपूर्वक वहां आये। वह अनेक स्तोत्र प्रवृत्तियोंसे स्तुति करता है और अनेक विभाजनोंके साथ समवसरणकी रचना करता है। वहां विराजमान उन्होंने वह कथन किया जो दूसरे देवोंने भी देख लिया। चार द्रव्यों ( धर्म, अधर्म, आकाश और काल ) का निरूपण कर उन्होंने अजीव तत्त्वका प्रकाशन किया। उन्होंने द्रव्यके स्कन्ध और देशका भी कथन किया। संक्षेपमें मार्गणा और गुणस्थानोंकी चर्चा की। सकाम-अकाम जीवोंको भी दरसाया। सात, पांच, नौ और छह भेदवाले इन और दूसरी ज्ञेय वस्तुओंका कथन किया। वहां उनके हाथ जोड़े हुए तीस गणधर हुए। कामदेवका दमन करनेवाले ग्यारह अंगों और चौदह पूर्वोके धारी छह सौ दस मुनि थे।
घत्ता-व्रतोंसे अंकित शिक्षक मुनि पैंतीस हजार आठ सौ पैंतीस थे, यह जानो ॥७॥
पापको नष्ट करनेवाले अवधिज्ञानी अट्ठाईस सौ थे। केवलज्ञानी भी इतने ही अर्थात् अट्ठाईस सो। जिनवरके चरणोंमें सिर झुकानेवाले मनःपर्ययज्ञानी दो हजार पचपन थे। श्रेष्ठ
७. १. A भेसउ । २. AP अंगारय । ३. AP णोरूवि । ४. AP समणहं । ५. पंचवीस । ८. १. AP एत्तिय तीयणाणि; T तइयणाणि ।
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