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-६५. १६.८]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित रेणुय भणिवि तेण हकारिवि कयलीहलु दंसेवि पैयारिवि । वइसारिय अंचोलिहि लुद्धे भणिउं अणंगसरोह णिरुद्धे । णिसुणि ससुर एयइ हउं इच्छिउ मुद्धइ एंतु मणेण पडिच्छिउ । एह देवि लहुई किं वुइ जाहि महारउ बोल्लिउ रुच्चइ । घत्ता-णासउ तणुगरुयत्तणु पत्थिवपुत्तियहं ॥
वडियजोठवणगठवह मज्झु विरत्तियह ॥१५॥
कण्णउ खुजियाउ तहु सावें कण्णाकुजणयरु तं घोसिउ एयहं पासिउ एह रवण्णी गउ वणवासहु महिहरकंदरि जाया तणुरुह दोणि महार्णीय दोहि मि णिहियई जयजसधामई रेणुयभायरु साहु अरिंजउ आउ णिहालिवि ससइ णमंतिइ
१६ जायउ तिव्वतवोहपहावे । देवहिं जैडचरित्तु उवहासिउ । देहि मझु ता ताएं दिण्णी। तहिं णिवसंतहं ताहं सणिज्झरि । दोण्णि वि चंद सूर णं णहचुय । इंदसेयरामंतई णामई। रिद्धिवंतु तवतत्तु सुसंजउ । मग्गिउ किं पि हसंतहसंतिइ।
धूल-धूसरित छोटी प्रिय कन्याको रेणुका कहकर पुकारा और केलेका फल दिखाकर उसे वंचित कर उस लोभीने उसे गोदमें बैठा लिया । कामदेवके तीरोंसे घायल वह बोला, 'हे ससुर, सुनिए । उसके द्वारा मैं चाहा गया हूँ। आते हुए मुझे मुग्धाने मनसे स्वीकार किया है। यह देवी है, इसे छोटा क्यों कहा जाता है ? कि जिसे हमारा बोलना अच्छा लगता है।
धत्ता-मुझसे विरक्त तथा जिनका यौवनगर्व बढ़ा हुआ है ऐसी पार्थिव कन्याओंके शरीरोंका गौरव नष्ट हो जाये ॥१५॥
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उसके शाप और तीव्र तपके प्रभावसे कन्याएं कुबड़ी हो गयीं । उसे कन्याकुब्ज (कान्यकुब्ज) नगर घोषित कर दिया गया। देवोंने उसके ( जमदग्नि ) मूर्खचरितका उपहास किया। इनकी तुलनामें यह सुन्दरी है, यह मुझे दे दो। तब पिताने उसे दे दिया। वनवासके लिए वह झरनोंसे युक्त पर्वतकी कन्दरामें चला गया। वहां निवास करते हुए उनके दो महाबाहु पुत्र हुए। दोनों मानो आकाशसे च्युत सूर्यचन्द्र थे। जय और यशके घर दोनोंके नाम इन्द्रराम और श्वेतराम रखे गये। रेणुकाके भाई मुनि अरिजंय ऋद्धिसे युक्त, तपसे सन्तप्त और सुसंयमी थे। वह उसे
३. A वियारिवि; PT पवियारिवि । ४. A अच्चो लिहि । ५. AP देहि । ६. लहुधी; P लहुवी ।
७. P वडगरुयं । १६. १. AP कण्णाखुज्जु । २. A तह घोसिउ । ३. A कुडचरित्त। ४. A महन्भुय । ५. A दिण्णई ।
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