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-६२. २०.४]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित
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तं णिसुणिवि देवि सुरूविणिय जहिं अच्छइ राउ समाहिरउ दोहिं मि गाढउ आलिंगियउ दोहिं मि सुमहुरु संभासियउ णीवीणिबंधु आमेल्लियउ दोहि मि सवियारु पलोइयउ अचलतें अहिणवमंदरहु तं बेणि मि वंदेप्पिणु गयउ अण्णहिं दिणि सुर चवंति जुवइ । ता भासइ ईसाणाहिवइ घत्ता-ता देवय मणि कंपइ
रूव मण्णइ माणवि
अणेक ढुक्क अइरूविणिय । तहिं ताहिं तासु दाविउ समउ । दोहिं मि मुहचुंबणु मग्गियउ। दोहिं मि आहरणहिं भूसियउ । दोहिं मि थणकलसहिं पेल्लियउ । दोहिं मि उरुखप्परि ढोइयउ। जं हियउ ण हित्तउ सुंदरहु । वंदारयघरिणिउ अविरयउ । णरलोइ अस्थि किं रूववइ । पियमित्तहि केरी रूवगइ । पुरहूयउ किं जंपइ । आगय रइ रइसेण वि ॥१९॥
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अहंसणीहिं सुरकामिणिहिं जोइवि अइरावयगामिणिहिं । अब्भंगिउ अंगु मणोहरउं
उग्घाडउं तुंगपयोहर। बेण्णि वि पुणु दारि परिट्ठियउ देविउँ दसणउक्कंठियउ । अक्खिउ कण्णइ कट्ठियहरइ अच्छंति तृयउँ दारंतरइ ।
१९ यह सुनकर एक सुरूपिणी और दूसरी अतिरूपिणी देवियां वहां पहुंचीं कि जहां राजा समाधिमें लीन था। वहां उन्होंने उसका अवसर प्रदर्शित किया। दोनोंने एक दूसरेका प्रगाढ़ रूपसे आलिंगन किया। दोनोंने एक दूसरेका मुख-चुम्बन मांगा। दोनोंने सुमधुर सम्भाषण किया। दोनोंने एक दूसरेको आभरणोंसे आभूषित किया। नीवीबन्ध खोल दिया। दोनोंने एक दूसरेको स्तनकलशोंसे प्रेरित किया। दोनोंने विकारपूर्वक देखा । दोनोंने उरके ऊपर उर रखा । अचलत्वमें नये मन्दराचलके समान उस सुन्दरके हृदयका अपहरण नहीं किया जा सका तो व्रतहीन वे दोनों देवांगनाएं वन्दना करके चली गयीं। दूसरे दिन देव कहते हैं कि क्या मनुष्यलोकमें रूपवती युवती है ? इसपर ईशानेन्द्रने प्रियमित्राकी रूपगतिका वर्णन किया।
पत्ता-तब देवी मनमें कांप उठती है, इन्द्र क्या कहता है मनुष्यणीके रूपको मानता है। रति और रतिसेन देवियां आयीं ||१९||
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ऐरावत गजके समान चलनेवाली उन देवबालाओंने अदृष्ट होकर उसके तेलसे मर्दित सुन्दर शरीर और खुले हुए ऊंचे स्तन देखकर फिर वे देवीको देखनेकी उत्कण्ठासे द्वारपर गयीं। यष्टि धारण करनेवाली कन्याने कहा-द्वारके पास स्त्रियां हैं, क्या विद्याधरियां हैं, या अप्सराएं?
१९. १. A समहरु । २. AP पुरुहूअउ । २०. १. A सइंसणीहिं । २. P देविहिं । ३. AP तियउ ।
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