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महाकवि पुष्पदन्त विरचित
गुणवंत गुत्तिगुत्तमणहु गणिवाण खरतवतवण भणिसुणिवि पक्खिहिं कंदियउं किमपिंडु ण भक्खिउ मरिवि गय तरसुर जाया भूकुलि tor भूयरतवणि तहिं जहिं अच्छे
उ घणरहहु घत्ता - भणिरं तेहिं जडपक्खिहिं तुज्झु पसाएं आयउं
मेहरहदेव परं दिष्णु सुहं उत्तर महिहर परियरिउँ पणयाललक्खजोयणविउलु उवयारहु पडिउवयारु किह दुल्लंघु सदेवहं दाणवह ता. इच्छवि कीलाभवणु मणि
ब्रेड लइ विवि गोवद्धणहु । ते चंदविचंद तिलय सवण । अप्पाणउं गरहिउं णिदियउं । जिणवयर्णे दुक्कियवेल्लिहय ।
एक देववणि गिरिगुहिलि । भूयाहिव बेण्णि वि पत्त खणि । संदरिसियविमलणाणपहहु । अम्हहिं किमिभक्खिहिं || दिव्वं भवंतर जायउं ||६||
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आवहि विमणि आरुहहि तुहुं । सरसरिकुलसिह रिअलंकरिडं । अवलोयहि मणुयखेत्तु सयलु । तुह किज्जइ जसु जगि रिद्धिसिह । अहिवंद णिज्जु वरमाणवहं । आरूढ सुंदरु सुरभवणि ।
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निवर्तन प्रकट कर गुणवान् गुप्तियोंसे गुप्त मन गोवर्धन मुनिको प्रणाम कर उन्होंने व्रत ग्रहण कर लिये । प्रखर तप करनेवाले वे दोनों चन्द्रतिलक और विचन्द्रतिलक श्रमण निर्वाणको प्राप्त हुए । अपने जन्मान्तरोंको सुनकर पक्षियोंने आक्रन्दन किया और स्वयं की गर्हा एवं निन्दा की। उन्होंने कृमियों के समूहको नहीं खाया । वे मर गये । पापरूपी लतासे आहत वे दोनों जिनवरके शब्दोंसे भूतकुल में व्यन्तरदेव हुए। उनमेंसे एक देववनकी गिरिगुहा में और दूसरा भूतरमणवनके भीतर । वे दोनों भूत राजा एक क्षणमें वहाँ पहुँचे जहाँ विमल केवलज्ञानकी प्रभाको प्रगट करनेवाले धनरथका पुत्र था ।
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घत्ता - कृमिकुलका भक्षण करनेवाले उन जड़ पक्षियोंने कहा कि आपके प्रसादसे हमलोगोंका दिव्य जन्मान्तर हुआ है और हम यहाँ आये हैं ||६||
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हे मेघरथ देव, तुमने सुख दिया है। आओ, तुम विमानपर चढ़ो, मानुषोत्तर पर्वतसे घिरा हुआ सरसरित् कुल पर्वतोंसे अलंकृत पैंतालीस लाख योजन विशाल इस समस्त मनुष्य लोकको देख लो। तुम्हारे द्वारा जगमें जिसकी ऋद्धिका प्रकर्ष किया जाता है उस उपकारका प्रतिकार हो सकता है ? देवताओं सहित दानवों को जो दुलंघ्य है और जो उत्तम मनुष्यों के द्वारा वन्दनीय है । ऐसे वह अपने मनमें क्रीड़ा भ्रमणकी इच्छा कर देवविमान में बैठ गया । अपने मित्रों,
२. AP वउ | ३. A दुक्खिय बेण्णि हय; P दुक्खियवेल्लिहय । ४. AP सुउ अच्छइ । ५. A अम्हहं । ६. APदिव्वु ।
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१. AP विवाणि । २. P मणुसुत्तर । ३. P रियरउं । ४. AP सरिसरं । ५. P तो ।
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