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महापुराण
[६२.७.७
णियसहयरकिंकरगुरुसहिउ कुक्कुडदेविहिं भत्तिइ महिउ । णहि सुरहरि जंति विविहंपुरई दावंति देव देसंतरई।। घत्ता-एहु भरहु अवलोयहि इहु हिमवंतु विवेयहि ।।
एह दिव्व गंगाणइ एह सिंधु मंथरगइ ॥७॥
इहु दीसइ णिम्मलु पोमसरु सिरिदेविसहिउ रुंजियभमरु । हइमवउ एहु पूरियदरिउ
वररोहियंरोहियाससरिउ । तुहिणईरि एहु गरुयउ अवरु अण्णेक्कु महासयवत्तसरु । हिरिदेवि एत्थु णिच्चु जि वसइ हरिवरिसु एउ सग्गु वि हसइ। इहु एत्थु वहइ णामेण हरि अण्णेक्कु पेक्खु हरिकंतसरि । इहु मंदरु ए गयदंतगिरि इहु सुरकुरु उत्तरकुरु संसरि । इहु णिसहु णाम महिहरु पवरु इहु जोवहि णिव तिगिछिसरु । दिहिदेवि एत्थु विरइयभवणे अच्छइ सुररायणिहत्तीण ।
एयाई विदेहई दोण्णि पिय सरि सीया सीओया वि थिय । १० इहु णीलिहि' केसरि णाम दहु इहुँ दीसइ कित्तीदेविसहुँ । अनुचर और गुरुजनों सहित उसकी कुक्कुट देवोंने भक्तिपूर्वक पूजा की। आकाशमें देवविमानमें जाते हुए, देव विविध नगर और देशान्तर दिखाते हैं।
घत्ता-इस भरतक्षेत्रको देखो। इसे हिमवन्त (हैमवत क्षेत्र) जानो। यह दिव्य गंगा नदी है, और यह मन्दगामिनी सिन्धु नदो है ॥७॥
यह निर्मल पद्म सरोवर है, जो श्रीदेवीसे सहित और भ्रमरोंसे गुंजित है। घाटियोंसे भरा हुआ यह हैमवत पर्वत है, ये श्रेष्ठ रोहित और रोहितास्या नदियां हैं । यह दूसरा महान् हिमगिरि है, और दूसरा महापद्मसरोवर है, इसमें ह्री देवी नित्य रूपसे निवास करती है। यह हरिवर्ष है, जो स्वर्गका उपहास करता है ? यहाँ हरि नामकी नदी बहती है और दूसरी हरिकान्ता नदी देखो । यह मन्दराचल है। यह गजदन्त गिरि है। यह नदियों सहित उत्तरकुरु और दक्षिणकुरु हैं । यह निषध नामका विशाल पर्वत है । हे राजन् ! यह तिगिच्छ सरोवर है। यहाँ धृतिने अपना भवन बना रखा है। सौधर्म स्वर्गके इन्द्र में अपना मन करनेवाली वह स्थित है। हे प्रिय. ये दोनों विदेह हैं और ये सीता और सीतोदा नदियां स्थित हैं। ये नील और केशर नामके सरोवर हैं,
६. AP णिउ सहयर । ७. A विविप्फुरई । ८. K देसंतई । ८. १. Mss. reads एह and इह promiscuously here। २. A रंजिय । ३. A हइमवइ। ४. P
रोहिणि रोहियासउ सरिउ । ५. A तुहिणयरि । ६. P reads this line after 8 b. ७. A सुरु कुरु । ८. A ससिरि । ९. AP'भवणु। १०. A सुयराय । ११. AP णिहित्तमणु । १२. A केसरु । १३. A ओ दीसइ; P पहु दोसइ । १४. A सुह ।
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