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-५९. १५. २२ ] महाकवि पुष्पदन्त विरचित
३५३ दामोयरि गइ णरयहु भीमरहंगकरि
मारवियारणिवारइ णिवइ सीरधरि । दीहेकाल वोलीणइ णरणियराउहरि
__धम्मणाहतित्थंतरि बयणसं तियरि । सुणि जे जाया भारहि भासुरचक्कवइ
बेण्णि सयलइलपोलय जिणकमणि हियमइ । एत्थु खेत्ति महिमंडलि णयरि विचित्तधरि .
मोरकीरकुरराउलि सीमारामसरि । तिथि वासुपुजेसहु दुद्धर वय धरिवि
णरवइ णामें राणउ दुक्करु तउ करिवि । हुउ मज्झिमगेवजहि अहममराहिवइ
जिणधम्में पाविज्जइ सासयसोक्खगइ । कवणु गहणु देवत्तणु परियत्तणसहि उं
एउं बप्प मइं जाणिउं लोएहिं वि कहि उं । सत्तवीससायरखइ जायउं मरणु सुरि
___ सउहावलिसिहरुभडि सिरिसाकेयपुरि । इह सुमित्तणरणाहहु सुहिसंमाणियहि
- हंसवंसकलसद्दहि भद्दाराणियहि । मघउ णाम हूयउ सुउ सुयणाणंदयरु
असियरपसमियरिउतमु भैमिउ णिवदिवसयरु । चक्रको हाथमें रखनेवाले नारायणके नरक जानेपर, कामदेवके विकारका निवारण करनेवाले बलभद्रके निर्वाण प्राप्त कर लेनेपर, नरसमूहकी आयुका क्षय करनेवाले तथा बुधजनोंको शान्ति प्रदान करनेवाले धर्मनाथके तीर्थकालका लम्बा समय बीतनेपर भारतमें जो चक्रवर्ती हुए उन्हें सुनो। वे दोनों ही धरतीका पालन करनेवाले और जिनवरके चरणों में अपनी मति रखते थे। इसी भरत क्षेत्रके महीमण्डलमें विचित्र घरोंकी नगरी थी जो मोर, कीर और करर पक्षियों के शब्दोंसे व्याप्त और सीमोद्यानों तथा नदियोंसे युक्त थी। वासुपूज्यके तीर्थकालमें नरपति नामका राजा कठोर व्रत धारण कर और दुष्कर तप कर मध्यम ग्रैवेयक विमानमें अहमेन्द्र देव हुआ। जिनधर्मसे शाश्वत सुख गति पायी जा सकती है, फिर परिवर्तनशील देवत्वको ग्रहण करनेसे क्या ? इस बातको मैं बेचारा जानता हूँ और लोगोंने भी यही कहा है। सत्ताईस सागर समय बीतनेपर देवकी मृत्यु हुई। सौधावलियोंके शिखरोंसे उद्भट श्री साकेतपुरीमें राजा सुमित्रकी सज्जनोंके द्वारा सम्माननीय, हंसकुलके शब्दवाली भद्रा नामकी रानीसे सुजनोंको आनन्द देनेवाला मघवा नामका पुत्र हआ। वह अपनी तलवाररूपी किरणसे शत्ररूपी अन्धकारको शान्त करनेवाला घूमता हुआ नव दिनकर था।
१५. १. AP सीरहरि । २. A दोहकालु; P दोहकालि । ३. P°णिरयाउं । ४. A धम्मदेवतित्थकरि;
P धम्मदेवतित्थंतरि । ५. AP"इलवालय । ६. A विचित्तयरि। ७. Pणाम। ८. P भमिउ जि दिवसयरु ।
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