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महापुराण
[६१. ७.१०१० दूसह विरह ग्गिझुलक्कभीउ दक्खालहि जाम ण जाइ जीउ ।
घत्ता-ता कवडणडित्तणु अवहरिवि थिउ हरि पायडु तणु करिवि ।।
जोयंति तरुणि णं सिसुहरिणि विद्धी मयणे हुंकरिवि ।।७।।
मणि खुत्तु कुमारिहि कामबाणु आरोहिवि धयचंचलु विमाणु । णिय सुंदरि तायहु कहिय वत्त तेण वि पारंभिय समरजत । पेसिय मंडलिय अणेयभेय सुर विज्जाहर चंदक्कतेय । ते जित्त पित्त रणराइएण
हलिणा बलिणा अवराइएण । सयमेव पत्त ता चावपाणि
हणु हणु भणंतु अहिमाणि दाणि । किर बेण्णि वि सर संधंति जाव। अंतरि पइठु दणुयारि ताव । जुज्झिय बेण्णि वि बहुपहरणेहिं ते केसव पडिकेसव घणेहिं । पच्छइ पुणु कित्तिहरहु सुएण मुक्कउ रहंगु णिठुरमुएण ।
तं लेप्पिणु हरिणा तहु जि दिण्णु विर्यलंतरुहिरु वच्छयलु भिण्णु । १० रिउ मारिवि किर चल्लंति जाम पयमेत्तु ण चलइ विमाणु ताम ।
घत्ता-ता पेक्खंतहिं सयलउ दिसउ समवसरणु अवलोइउं ।।
हरिबलहिं बिहि मि विभियवसहिं णियविजामुहं जोइउं ||८|| बोली, "हे आदरणीय, उसके दर्शन कैसे हो सकते हैं, उसे दिखा दीजिए कि जबतक असह्य विरहाग्निकी ज्वालासे भीत मेरा जीव नहीं जाता।"
घत्ता-तब नारायण अनन्तवीर्य अपना कृत्रिम नटत्व छोडकर तथा प्राकृत शरीर धारण कर स्थित हो गये । उसे देखकर वह तरुणी हुं करके कामसे इस प्रकार विद्ध हो गयो मानो तरुण हरिणी विद्ध हो गयी हो ॥७॥
कुमारीके मन में कामबाण लग गया। ध्वजोंसे चंचल विमानमें बैठाकर कुमारी सुन्दरी ले जायी गयी। पिताको यह समाचार दिया गया। उसने युद्धयात्रा प्रारम्भ की। उसने अनेक प्रकारके माण्डलीक तथा सूर्य-चन्द्रके समान तेजवाले देव विद्याधर भेजे । उन्हें जीतकर युद्धशोभी बलभद्र अपराजित और नारायण अनन्तवीयने भगा दिया। तब वह अभिमानी दानी हाथमें धनुष लेकर स्वयं 'मारो-मारो' कहता हुआ पहुंचा । जबतक वे दोनों अपने सरोंका सन्धान करें तबतक दानवोंका शत्रु दमितारि बीच में आ गया। वे नारायण और प्रतिनारायण सघन प्रचुर शस्त्रोंसे लड़े। परन्तु बादमें कीर्तिधरके पुत्र कठोर भुजाओंवाले दमितारिने चक्र फेंका। उसे झेलकर नारायण अनन्तवीर्यने उसीपर चला दिया। जिससे रक्त गिर रहा है, ऐसा उसका वक्षःस्थल भिन्न हो गया । शत्रुको मारकर जैसे ही वे दोनों चलते हैं, एक पग भी उनका विमान नहीं चल पाता।
पत्ता-तब सब दिशाओं में देखते हुए उन्होंने समवशरण देखा। विस्मयके वशीभूत होकर नारायण और प्रतिनारायण अपनी विद्याओंके मुख देखने लगे ॥८॥
८. १. AP विवाणु । २. AP हरिणा । ३. A अहिमाणदाणि; P अहिमाणखाणि । ४. A णिग्गंतरुहिरु ।
५. AP पयमेत्त विवाणु ण चलइ ताम । ६. AP विभय ।
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