________________
३९४
१०
५
महापुराण
पालिय अहिंस वयणेण तासु दिण्णउं सुन्वयखंतियहि दाणु सम्मत्ताभावे कयड बालि सोहम्मसग्गि सामण्णदेवि हूई दमियारिहि तणिय पुत्ति
rudra धर्मेो वासु । आहारवमणि विदिगिछेठाणु । मोप जणु जम्मजालि । होय माणुस देहु लेवि । जं दिट्ठी पिदुपवित्ति । घत्ता - तं वयैणीवमणविनिंदणहु फलु पई सुइ अमुँहुंजियरं ॥ हियउल्लउं जणणहु रणि वडिउ दिट्ठउं रुहिरें मंडियडं ॥१०॥
११
तं णिसुणिवि हरि बल णियघरासु गोविंदत कइकाम घेणु रिजसुय तं तहु पहुंण देत कंचणसिरियहि संरंभगाढ आवेष्पिणु चवलाउहकरेहिं सोयरिंग दड्दु सरीर रुक्खु बल केसव पत्थिवि गय कुमारि सुपहहि पासि थिय संजमेण
[ ६१.१०.६
कण्ण लेवि परिपुरासु । सिवमंदिरु गयउ अनंतसेणु । करवालहिं सूलहिं उत्थरंति । भार सुघोस वर विज्जदाढ | बेव हि हरिहलह रेहिं । असति सबंधवपलयदुक्खु । जिणु णविवि सपहु णाणधारि । गणणिहि संतिहि कहिएं कमेण ।
पर शीलबाहु और सर्वजशांक साधुके दर्शन किये। उनके उपदेशसे उसने अहिंसा धर्मका पालन किया । तथा एक और धर्मचक्र उपवास किया । सुव्रता नामक आर्थिकाको दान दिया। उसने आहारको वमन कर दिया ( लेकिन ) सम्यक्त्वके अभाव में (आर्यिका के द्वारा) आहारवमनको उस बालाने घृणाका स्थान माना । जन मोहके कारण जन्मजाल में पड़ते हैं । सौधर्म स्वर्ग में सामान्य देवी होकर, वहाँसे मरकर मनुष्य शरीर धारण कर वह दमितारिकी पुत्री हुई और इसलिए पिताके विनाशके कारण दुःख प्रवृत्ति उसने देखी।
घत्ता - उस आर्या सुव्रताके वमनकी निन्दाका फल उसने भोगा । और युद्ध में मारे गये अपने पिताको रक्तसे सना हुआ देखा || १०||
Jain Education International
११
यह सुनकर बलभद्र और नारायण कन्याको लेकर अपने घर प्रभाकरीपुरीके लिए चले गये । गोविन्दपुत्र, कवियोंके लिए कामधेनु अनन्तसेन शिवमन्दिर के लिए गया । लेकिन शत्रुपुत्रों (सुघोष और विद्युष्ट्र ) ने उसे नगर में प्रवेश नहीं करने दिया । वे तलवारों और शूलों को लेकर उछल पड़े । हिंसा के संकल्पसे दृढ़ दोनों कनकश्री श्रेष्ठ भाई थे । तब अपने हाथों में चंचल आयुध लिये हुए उन दोनों ( बलभद्र और नारायण ) ने उन दोनों को मार डाला । उस ( कनकश्री) का शरीररूपी वृक्ष शोककी आगसे जलकर खाक हो गया । सम्बन्धियोंके विनाशका दुःख नहीं सह सकने के कारण बलभद्र और नारायणसे प्रार्थना कर ( अनुमति लेकर ) कनकश्री ज्ञानधारी स्वयंप्रभ मुनिको प्रणाम कर उपदिष्ट क्रम और संयम के साथ शान्त सुप्रभा आर्यिका के
४. K धम्मु । ५. AP विजिगिछ । ६. A तें वइणीव ; P तं वइव । ७. AP अणुहुजिउं ।
८. AP रंजियउं ।
११. १. AP पहयरपुरासु ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org