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-६१.५.३]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित घत्ता-मणिचूलु वि सत्थियसुरेहरहु णिवडिवि हुउ अणुमइतणउ ।
सो सूहउ सोम्मु सुलेक्खणउ वणे जियणीलंजणउ ॥३॥
परदुजउ केसउ मणि गणेवि कोक्किउ अणंतवीरिउ भणेवि । पढमहु विरएप्पिणु पट्टबंधु लहुयहु ढोइवि जुवरायचिंधु । सिंहासणु छत्तई परिहरेवि णिम्मोहभावभावणउ लेवि । अरहतहु अविचितियपहासु पिउ सरणु पइठु सयंपहासु । अवलोइवि कत्थइ णायराउ सिरितण्हइ मरिवि फणिंदु जाउ । पुरि सुहं वसंति ते बे वि भाइ णडि बब्वरि अण्णेक वि चिलाइ। णञ्चंति ताउ ते तहिं णियंति
जा ताम हारहिमहासकंति । आयउ णारउ दिग्गयजसे हिं संमाणिउ उ रसपरवसेहिं। घत्ता-मणि रोसु हुयासणु पज्जलिउ सहहुं ण सकिउ चैलियगहि ॥
सो जंतु ण केण वि दिलु तर्हि पवणु चडुलु उल्ललि उ जहि ॥४॥
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गउ रूसिवि सिवमंदिरपुरासु दमियारिहि विज्जाहरणिवासु । वज्जरिउ तेण रयणाई कासु
पई मेल्लिवि को महियलि महीसु । ववरिचिलाइणामालियाउ णच्चणिउ दोणि वरबालियाउ ।
घता-मणिचूल देव भी स्वस्तिक विमानसे च्युत होकर अनुमतिका पुत्र हुआ। वह सुभग सौम्य सुलक्षण रंगमें नील और अंजन पर्वतको जीतनेवाला था ॥३॥
मनमें बलभद्रको शत्रुओंके द्वारा अजेय समझकर उसे अनन्तवीर्य कहकर पुकारा गया। पहलेको पट्ट बांधकर और छोटेको युवराजके चिह्न देकर सिंहासन और छत्र छोड़कर निर्मोह भावनाका चिन्तन करते हुए वह अचिन्तनीय प्रभाववाले स्वयंप्रभ अरहन्त की शरण में गया। कहींपर नागराजको देखकर लक्ष्मीकी कामनासे मरकर वह धरणेन्द्र हुआ। वे दोनों भाई उस नगरीमें सुखपूर्वक रहने लगे। उनकी बर्बरी और किलातो नामकी दो नर्तकियां थीं। जब वे दोनों नाच रही थी और वे दोनों देख रहे थे तभी हार हिम और हास्यके समान कान्तिवाले श्री नारद मुनि आये। दिग्गजोंके समान यशवाले रसके वशीभूत ( नाट्यरस ) उन दोनोंके द्वारा उनका सम्मान नहीं किया गया।
पत्ता-उनके मन में क्रोधकी ज्वाला भड़क उठी। वे उसे सहन नहीं कर सके, आकाशमें जाते हुए उन्हें कोई नहीं देख सका। पवनकी तरह चंचल वे आकाशमें उछल गये ॥४॥
वह रूठकर दमितारि राजाके निवास शिवमन्दिरपुर गये। उन्होंने वहां कहा, "रत्न किसके पास हैं, आपको छोड़कर धरतीपर और कौन राजा है ? बर्बरी और किलात नामकी दो
४. A मणिचूलि । ५. A°सुरवरहु णिवडिवि ताहि जि हुउ तणउ । ६. A सलक्खणउ । ४. १. AP सीहासणु । २. A चलियम्गहि ।
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