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-६०.३.३]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित
३५९
जंबूदीवि भरहि विजयाचलु अहिणवचंदणचंपयपरिमलु । जहिं सुरणारिहिं गेयपवीणहिं सरु सुम्मइ वज्जंतहि वीणहि । जहिं रिसिवसइ अछित्तु अहंस जसु मेहल सेविजइ हंसे । जहिं जं भूसिज्जइ सरकंक णिम्मलु तं वणिजइ के के। जहिं केवलि णिव्वाणपयं गउ । जहिं मणियरहि ण दिट्ठ पयंगउ । फलिहसिलायलि जहिं मायंगहि । मुँहुं दिजइ जोइयणिययंगहिं । दाहिणसे ढिहि तहि रहणेउरु पुरु णारियणरणियपयणेउरु । तेत्थु जलणजडि णिवसइ खगवइ विणेओणयसिरु णारइ खगवइ। णियजसेण कंतह चंदाहह तिलयणयरणाहहु चंदाहहु । तासु सुहहदेवि पियराणी णं आसीस पुवपियराणी। घत्ता-ताहं बिहिं मि सुय हुई णं रइणाहहु दुई। वाउवेय सा एयहु दिण्णी दिणयरतेयहु ॥२॥
३ सिहिजेडिणामहु जयसिरिधामहु रूउद्दामहु णिज्जियकामहु । अक्ककित्ति सुउ.जायउ केहउ खत्तधम्मु णरवेसे जेहउ । अवर वि चंदसरीरइ णं पह उप्पण्णी सुय णाम सर्यपह ।
२
जम्बूद्वीपके भरतक्षेत्रमें अभिनव चन्दन और चम्पक परिमलसे युक्त विजयाध नामका पर्वत है जहां गीतमें प्रवीण सुरनारियों और बजती हुई वीणाका स्वर सुना जाता है। जहाँ ऋषियोंकी बस्ती है और जो पापांशसे अछूता है, जिसकी मेखला हंसके द्वारा सेवित है। जहाँ जो जल जलबकसे भूषित हैं निर्मल उस जलका मैं क्या वर्णन करूं.? जहां केवलियोंने निर्वाण प्राप्त किया। जहाँ मणिकिरणोंके कारण सूर्य दिखाई नहीं देता। जिन्होंने अपने शरीरका प्रतिबिम्ब देखा है ऐसे हाथी जहां स्फटिक शिलाओंपर अपना मुंह देखते हैं। उस पर्वतको दक्षिण श्रेणीमें रथनूपुर नगर है, जिसमें नारीजनोंके नूपुरोंकी रुनझुन सुनाई देती है। उसमें ज्वलनजटी नामका विद्याधर निवास करता था। अपने यशसे कान्त चन्द्रके समान आभावाले तिलकनगरके राजा चन्द्राभको सुभद्रादेवी नामकी प्रिय रानी थी, जो मानो पूर्वजोंका आशीर्वाद थी।
पत्ता-उन दोनोंके एक पुत्री हुई जो मानो कामदेवकी दूती थी। वह वायुवेगा (कन्या) दिनकरके समान तेजवाले इसे ( ज्वलनजटो ) को दी गयी ॥२॥
विजयश्रीके घर कामको जीतनेवाले और रूपमें उत्कट ज्वलनजटीका अर्ककीर्ति नामका ऐसा पुत्र हुआ, जो मनुष्यके रूपमें जैसे छात्रधर्म हो। और भी उसे चन्द्रमाके शरीरसे प्रभाके २. १.A सुरु । २. A सरु कंकें। ३. A मणिणियरहिं । ४. AP महुँ । ५. A णारीयण । ६. A
विणउण्णय । ३. १. A सिहजडि । २. A रूवोदामह ।
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