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सिरिमइदेविहि उयरुप्पण्णी दुज्जण मण इसारिय सल्लहु समउं वहुल्लियाइ गयगामिण सातमइ उविंद रत्ती
धाइय पहरणपाणि ससंदण कह व णिवारहुं बे विण सक्किउ रज्जु सहु सदेहु माइवि रायाणीउ तेण जि मर्गे गर वे महियल णिवडेपिणु धादइडि पुग्वभायंतरि चत्तारि वि अज्जइं संजायई जाये णिब्भरु पेमर सिल्लउं हूई मुणिवरदाणें दिय
महापुराण
पत्ता - णंदणवणि शिवसंतहिं कारणिताहि अजुत्तउं
[ ६०. २७. ८
तें सिरिकंत नाम सुय दिण्णी । सिरिसेणं गरुहहु पुरिमिल्लहु । अवर पवर संपेसिय कामिणि । मोहें मयरोहेण व मत्ती । दो रोचितं तहिं ॥ बिहिं मिजुज् आढत्तरं ||२७||
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सिरिसेणें अवलोइय णंदण | रवइ दूमि चित्ति चमक्किउ । विस सेलिधगंधु अग्घाइवि । दियधीयतिं तिह णासगें । मलियनयण तेत्थु मरेपिणु । उत्तरकुरुहि सुभोयणिरंतरि । छणुसहस पमाणियकायई । सीदिय मिहुणुल्लउं । बंभणि भामिणि पुरिर्स अणिदिय ।
प्रांगण में शत्रुदलका संहार किया है ऐसा महाबल नामका राजा था । उसके अपनी श्रीमती नामकी देवीके उदरसे उत्पन्न श्रीकान्ता नामकी पुत्री थी । दुर्जनों के मनमें शल्य उत्पन्न करनेवाले श्रीषेणके पहले पुत्र इन्द्रसेन से उसका विवाह कर दिया । उस बहूके साथ एक और गजगामिनी (अनन्तमति ) स्त्री भेजी गयी । वह अनन्तमति उपेन्द्रसेन में अनुरक्त हो गयी, मोहके कारण वह मदिरा समूहके समान मतवाली हो उठी ।
घत्ता - नन्दनवन में निवास करते हुए, दोष और क्रोधका विचार करते हुए उन दोनों के बीच उसके कारण अयुक्त युद्ध प्रारम्भ हो गया ||२७||
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हाथ में हथियार लेकर रथसहित दोनों भाई दोड़े । श्रीषेणने पुत्रोंको देखा, वह उन दोनों को किसी भी प्रकार मना नहीं कर सका। राजा मनमें दुःखी हुआ और आश्चर्य में पड़ गया । राज्य, अपना शरीर और स्नेह छोड़कर तथा विषकमल पुष्पकी गन्धको सँघकर, रानियाँ भी उसी मार्गसे, और उसी प्रकार ब्राह्मणकन्या भी नाकके अग्रभागसे ( सूँघकर ) भारी वेदनासे धरतीतलपर गिरकर और बन्द किये हुए नेत्रोंसे मरकर धातकीखण्डकी पूर्वदिशा में सुन्दर भोगोंसे निरन्तर उत्तर कुरुमें श्रेष्ठ लोग उत्पन्न हुए । उनके शरीरका प्रमाण छह हजार धनुष था । राजा श्रीषेण और सिंहनन्दिताका जोड़ा उत्पन्न हुआ जो प्रेमसे रसमय और पूर्ण था । ब्राह्मणी सत्यभामा स्त्री हुई और रानी आनन्दिता पुरुष ।
६. AP पुव्विलहु |
२८. १. P°सेलें । २. A रायाणियउ जि तेण जि । ३. A गरडवेय; P गरवेएं । ४. A सुललियणितरि । ५. A जो भिरपेम्म । ६. AP राय । ७. A भाविनि । ८. AP पुरिसु ।
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