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- ६०. २७.७ ]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित
कहइ जणणु पियवयणहिं तुट्ठ कंतु तुहार होइ ण दियवरु
सिरिसेणु उरसिरमणि बीय अणिदिये काई भणिज्जइ ता बिहिं म कंतिइ सुच्छाया कुललंछणउं धरियमज्जायहु
घत्ता - ते कविलु अवगण्णिउ कक्कस दंडें ताडिउ
सच्चैभाम सइ सुद्ध हवेष्पिणु सर्दम अभिर्येगइ णामारिंजय सिरिसेणे आहारु पयच्छिउ चउदह मलपरिमुक्कु अकुच्छिउ भायणधरणाइयउ सुधम्मउ चहुं वि सुकयबीउ लइ लडूउं सेमर रंगदल व ट्टियपरबलु
महुं घरि दासीसु णिक्किउ | एउ भणेपिणु गड सोणियघरु | पढमसीहणंदिय तहु पणइणि । जाहि रइ विदासि व्व गणिज्जइ । इंदविदसेण सुय जाया । जंबूधूयइ सौहिउं राहु | जणि चंडालु व मणिउ ।। पुरवराउ णिद्धाडिउ ||२६||
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थिय उवसमु हियउल्लइ लेप्र्पिणु । आइय भिक्खहि चारण संजय । दिज्जंतर घरिणीहिं समिच्छिउ । रिसिहि पाणिवत्तेण पडिच्छिउ । सञ्चयतणयइ किड सुहकम्मउ । भोयभूमिपरमाउ णिबद्धरं । कोसंबीणयरीसु महाबलु ।
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कारण उष्ण उच्छ्वासवाली बहूने पूछा । उसके प्रिय वचनोंसे सन्तुष्ट होकर पिता कहता है कि यह मेरे घर में नीच दासीपुत्र था । तुम्हारा पति ब्राह्मण नहीं है । ऐसा कहकर वह ब्राह्मण अपने घर चला गया । वहाँ नर- शिरोमणि श्रीषेण राजा था। उसकी पहली पत्नी सिंहनन्दिता थी । दूसरी पत्नी आनन्दिता थी, उसके विषय में क्या कहा जाये ? उससे रति भी दासीके समान समझी जाती थी । उन दोनोंके कान्तिसे सुन्दर इन्द्रसेन और उपेन्द्रसेन नामके पुत्र हुए । जम्बूकी कन्याने मर्यादाको धारण करनेवाले राजासे कुलकलंककी बात कही ।
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घत्ता - राजाने उसका अपमान किया, लोगों में वह चण्डालकी तरह समझा गया । कठोर दण्ड प्रताड़ित उसे उस प्रवरपुरसे निकाल दिया गया ||२६||
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सती सत्यभामा शुद्ध होकर अपने मनमें शान्तभाव धारण कर रहने लगी । संयमधारी अमितगति और अरिजय नामके दो चारण मुनि आहारके लिए आये । श्रोषेण राजाने उन्हें आहार दिया, देते हुए उसका दोनों पत्नियोंने समर्थन किया, चौदह प्रकारके मलोंसे मुक्त और अकुत्सित उस आहारको मुनियोंने अपने हाथरूपी पात्रसे स्वीकार कर लिया। बरतन आदि रखने का जो सुधर्म है, वह सुकर्म सत्यक ब्राह्मणकी कन्याने किया । उन चारोंने पुण्यरूपी बीजको प्राप्त किया और भोगभूमिकी परम आयुका बन्ध कर लिया। कौशाम्बी नगरोमें, जिसने युद्धके
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२६. १. AP एम । २. P अनंदिय । ३. P साहियउं । ४. A तेण वि खलु ।
२७. १. AP सच्चभाव । २. AP एप्पिणु । ३. A सदणे but records a : सर्वाणि वा । ४. AP अमियगय । ५. AP समरंगणं ।
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