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महापुराण
[६१. १. १७पहरणि मोहणि जंभणि पाडणि। अवर पहावइ सइ पविरलगइ। भीमावत्तणि ' पवरपवत्तणि। पुणु लहुकारिणि भूमिवियोरणि। रोहिणि मणजव देवि महाजव। चंडाणिलज णिरु चंचलजव । बहुलुप्पायणि सत्तुणिवारिणि । अक्खरसंकुल खलगल संखल। मायाबहुई पण्णलेहूइ। हिमवेयाली सिहियाली। मोक्कलवाली चलचंडाली। अलिसामंगी सिरिमायंगी। इय वरविजहिं णहयरपुजहिं । उहसेढीसरु हुउ परमेसरु। अण्णहि वासरि तेणे सणेसरि। दमवरणामहु
णिजियकामहु। पुण्णुप्पायणु दिण्णउ भोयणु। घत्ता-तें चारणदिपणे भोयणेण ईंह रत्ति जि संभविउ फलु ॥
सुररवु दुंदुहिसरु वसुवरिसु मेहहिं वुट्ठउ सुरेहिजलु ॥१॥
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प्रहरिणी, मोहिनी, जम्भनी, पातनी और प्रभावती, प्रविरलगति, भीमावर्तनी, प्रबलप्रवर्तनी, फिर लघुकारिणी, भूमिविदारिणी, रोहिणी मनोवेगा, चण्डवेगा, अग्निवेगा, बहुलोपिनी, शत्रुनिवारिणी, अक्षरसंकुला, दुष्टगलशृंखला, मायाबह्वी, पर्णलध्वी, हिमवेताली, शिखीवेताली, मक्त आलापिनी, चलचाण्डाली और भ्रमर-श्यामांगी. इस प्रकार विद्याधरोंके द्वारा पूजित इन वर विद्याओंके द्वारा वह दोनों श्रेणियोंका परमेश्वर हो गया। आदित्य सहित दूसरे दिन ( रविवारके दिन ) उसने कामको जीतनेवाले दमवर मुनिको पुण्यको उत्पन्न करनेवाला भोजन दिया।
घत्ता-उन चारण मुनिको दिये गये भोजनसे इसी जन्ममें फल प्राप्त हुआ। देवध्वनि, दुन्दुभिस्वर, धनवृष्टि और मेघोंके द्वारा सुरभित जलकी वर्षा ॥१॥
८. A भंडणि पाडणि; Pबंधणि पाणि । ९. AP °वियारिणि । १०. A चंडालिनिजव । ११. मायापहई; K मायवहइ but corrects it to माया । १२. P पण्णइ लहई। १३. A तेण णरेसरि । १४. A इह रत्त जि । १५. A सुह जलु ।
मायाविधारि । पण लहई हालिभिजन
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