SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 433
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३८६ महापुराण [६१. १. १७पहरणि मोहणि जंभणि पाडणि। अवर पहावइ सइ पविरलगइ। भीमावत्तणि ' पवरपवत्तणि। पुणु लहुकारिणि भूमिवियोरणि। रोहिणि मणजव देवि महाजव। चंडाणिलज णिरु चंचलजव । बहुलुप्पायणि सत्तुणिवारिणि । अक्खरसंकुल खलगल संखल। मायाबहुई पण्णलेहूइ। हिमवेयाली सिहियाली। मोक्कलवाली चलचंडाली। अलिसामंगी सिरिमायंगी। इय वरविजहिं णहयरपुजहिं । उहसेढीसरु हुउ परमेसरु। अण्णहि वासरि तेणे सणेसरि। दमवरणामहु णिजियकामहु। पुण्णुप्पायणु दिण्णउ भोयणु। घत्ता-तें चारणदिपणे भोयणेण ईंह रत्ति जि संभविउ फलु ॥ सुररवु दुंदुहिसरु वसुवरिसु मेहहिं वुट्ठउ सुरेहिजलु ॥१॥ ३५ प्रहरिणी, मोहिनी, जम्भनी, पातनी और प्रभावती, प्रविरलगति, भीमावर्तनी, प्रबलप्रवर्तनी, फिर लघुकारिणी, भूमिविदारिणी, रोहिणी मनोवेगा, चण्डवेगा, अग्निवेगा, बहुलोपिनी, शत्रुनिवारिणी, अक्षरसंकुला, दुष्टगलशृंखला, मायाबह्वी, पर्णलध्वी, हिमवेताली, शिखीवेताली, मक्त आलापिनी, चलचाण्डाली और भ्रमर-श्यामांगी. इस प्रकार विद्याधरोंके द्वारा पूजित इन वर विद्याओंके द्वारा वह दोनों श्रेणियोंका परमेश्वर हो गया। आदित्य सहित दूसरे दिन ( रविवारके दिन ) उसने कामको जीतनेवाले दमवर मुनिको पुण्यको उत्पन्न करनेवाला भोजन दिया। घत्ता-उन चारण मुनिको दिये गये भोजनसे इसी जन्ममें फल प्राप्त हुआ। देवध्वनि, दुन्दुभिस्वर, धनवृष्टि और मेघोंके द्वारा सुरभित जलकी वर्षा ॥१॥ ८. A भंडणि पाडणि; Pबंधणि पाणि । ९. AP °वियारिणि । १०. A चंडालिनिजव । ११. मायापहई; K मायवहइ but corrects it to माया । १२. P पण्णइ लहई। १३. A तेण णरेसरि । १४. A इह रत्त जि । १५. A सुह जलु । मायाविधारि । पण लहई हालिभिजन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002724
Book TitleMahapurana Part 3
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages574
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, & Story
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy