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एम रुयंति तेण सा णिज्जइ
एतहि पवणु व वेयपयट्टड मत्तमयूरबंदकयतंडवु पररमणीहरणेण णिवेसिय लोलइ विज्ज सुतारारूवें उत्तरं भत्तारें किं जायचं अक्खइ मायाविणि हउं पट्टी विसरिस विसरसवियणगुरुक्की चंदणदणईणु पुंजिवि
ता संपत्त बिणि विज्जाहर तेहिं तिविट्ठपुत्त ओलक्खिउ एक्के बुज्झियमायामग्गँ
महापुराण
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घत्ता1-पियविओय ओयंपिय संकज वगड
[ ६०.१५.१ -
पिययमविरहें तिल तिलु झिज्जइ । मृगु पुइणाहु पल्लट्टउ । पडिआय सुंदरिलय मंडउ । रसिलालितेत्थु जि दरिसिय । जाणिव गहिय कंत जमदूएं । दीस वयकमलु विच्छायउं । कुक्कुडफणिणा करयलि दट्ठी । इय भांति पाणेहिं विमुक्की । सूरकंत मणिजलणु परंजिवि । परिसेसियइह पर हिउ ॥ णरवइ सलहि वलग्गउ || १५ || १६
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सयणविहुरहर असिवर फरकर | णिज्जणि वणि मरंतु णो वेक्खि । ताडिय झत्ति वामपायग्गे ।
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इस प्रकार विलाप करती हुई वह उसके द्वारा ले जायी गयी । प्रियतमके विरह में वह तिल-तिल क्षीण हो रही थी । यहाँपर पवनके समान वेगसे भागा हुआ हरिण भाग गया । राजा लौट आया। जिसमें मत्त मयूरवृन्द नृत्य कर रहे हैं, ऐसे सुन्दर लता-मण्डप में आया । परस्त्रीके हरण करनेवालेके द्वारा स्थापित उसी रत्न-शिलातलपर सुताराके रूपमें हिलती हुई विद्या दिखाई दी । यह जानकर कि वह यमदूत ( मृत्यु ) के द्वारा ग्रहण कर ली गयी है पतिने पूछा"क्या हुआ, तुम्हारा मुखकमल कान्तिहीन दिखाई क्यों दे रहा है ?" वह मायाविनी कहती है कि कुक्कुट सांपके द्वारा हथेली में काटी गयी मैं नष्ट हो रही हूँ । असामान्य विषरसकी वेदनासे भरो हुई और यह कहती हुई; उसने प्राण छोड़ दिये । लाल चन्दनका ईंधन इकट्ठा कर सूर्यकान्तमणिक ज्वालासे आग लगाकर -
घत्ता – प्रिया के वियोग से काँपता हुआ इस लोक और परलोकके हितको छोड़ देनेवाला, कामदेव के वशीभूत होकर वह राजा चितापर चढ़ गया || १५ ||
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इतने में दो विद्याधर वहाँ आये, जो स्वजनोंके दुःखको दूर करनेवाले और असिवररूपी अस्त्र हाथमें लिये हुए थे । उन्होंने त्रिपृष्ठके पुत्रको देखा । एकान्त वनमें मरते हुए उसकी उन्होंने उपेक्षा नहीं की । मायाके मार्गको समझनेवाले एकने बायें पैरके अग्रभागसे शीघ्र उस विद्याको
१५. १. AP मिगु । २. A कमलवयणु; P वयणु कमलु । ३. A इंघण । ४. A आयाम । १६. १. AP ण उवेक्खिउ ।
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