Book Title: Mahapurana Part 3
Author(s): Pushpadant, P L Vaidya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 421
________________ ३७४ महापुराण [६०.२०.३ भीममहाहवभरधुरजुत्तह पंचसयाई सहायई पुत्तहं । बहिणीवइदिण्णाई लएप्पिणु विज्जादेवयाउ सुमरेप्पिणु । चमरचंचपुरवइहि ससंदणु उक्खंध गउ केसवणंदणु । णियसोहाणिज्जियहिमवंतहु अमियतेउ सिहरिहि हिरिवंतहु । सहसरस्सिपुत्तेण समेयउ गउ मैरुवेएं मारुयवेयउ । तहिं आराहियमृगसंवग्गइ संजयंतपडिमापायग्गइ। णं णिवइहि महिमंडलरिद्धी विज महाजालिणि तहु सिद्धी । एत्तहि असणिघोससिरिविजयहं जायउ संगरु सधयहं सगयह। णियसुय असणिसुघोसें पेसिय जे ते जुज्झिवि दिसिहिं पणासिय । सहसघोस सयघोस सुघोस वि मेहघोस अरिघोस असेस वि । जं गय ते पविहंडियमाणा तं मेल्लंतु बाण फणिमाणा । पत्ता-णियवि सुताराहारउ सिरिविजयं दुव्वारउ ।। छाइउ सरवरपंतिहिं णाइ उवद्दउ संतिहिं ।।२०।। २१ आसुरियहि लच्छिहि सुउ धायउ ___णाइ कयंत दंडु णिवेइउ । धाराजियखयहुयवहजाले • हउ विजएं पइसिवि करवालें। रिउ भामरिविजामाह बिहिं रूवहिं उत्थरइ सद। विद्याधर समूहको हटानेवाले रश्मिवेगादि, भीम महायुद्धके भारमें जुते हुए पांच सौ पुत्र सहायकके रूप में अपने बहनोईको दिये। उन्हें लेकर और विद्यादेवियोंका स्मरण कर केशवनन्दन ( श्रीविजय ) रथ सहित चमरचंच नगरके राजापर उक्खन्ध अश्वपर बैठकर आक्रमणके लिए गया। हवाके समान गतिवाला अमिततेज अपने पुत्र सहस्ररश्मिके साथ आकाशमागसे अपनी शोभासे चन्द्रमाको जोतनेवाले ह्रीवन्त पर्वतपर गया। वहां, जहां देवसमूहकी आराधना की है, ऐसे संजयन्त मनिकी प्रतिमाके आगे उसे महाज्वाला नामको विद्या सिद्ध हई, मानो राजाके लिए महिमण्डलकी ऋद्धि सिद्ध हुई हो। यहाँ ध्वजों और गजों सहित अशनिघोष तथा श्रीविजयमें युद्ध हुआ। अशनिघोषके द्वारा भेजे गये जो पुत्र थे वे लड़कर दिशाओंमें भाग गये। सहस्रघोष, शतघोष, सुघोष, मेघघोष और अरिघोष आदि सभी। जब वे खण्डित मान तथा नागके आकारके बाण छोड़कर चले गये ___ घत्ता-तब सुताराके अपहरण करनेवालेको दुर्वार समझकर श्रीविजयने तीरोंकी पंक्तिसे उसे इस प्रकार छा लिया मानो शान्तियोंने उपद्रवको छा लिया हो ॥२०॥ २१ आसुरी लक्ष्मीका पुत्र इस प्रकार दौड़ा मानो कृतान्तने अपना दण्ड निवेदित किया हो। विजयने प्रवेश कर धाराप्रलयकी आगको ज्वालाको जीतनेवाली तलवारसे उसे मार दिया। शत्रु ३. A ओखंधि; P उद्धद्धे । ४. AP हिरिमंतह । ५. A मरुमग्गें: T मरुवेगें आकाशेन । ६. P'मिग । ७. A मेल्लंति । ८. AP णिएवि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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