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-६०.२२.७ ]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित हय बेण्णि वि चत्तारि समुग्गय ते वि दुहाइय अट्ट समुग्गय । अट्ठ णिहय सोलह संजाया
सोलह तय बत्तीस समाया। बत्तीस वि दोखंडिय जामहिं रिउ चउसट्ठि पराइय तामहिं । चउसट्टि वि विद्दलिय सरूवउ अट्ठावीसउ सउ संभूयउ । एम दुवड्ढिइ वढिउ दुद्धरु हणु भणंतु असिवसुणंदयकरु । जलि थलि दसदिसिवहि णहपंगणि दीसइ असणिघोसु समरंगणि । वेढि उ पोयणणाहुखगिदहिं
णं विंझइरि महाधणविंदहिं । घत्ता-जैरफेरवरवभीमइ तहिं तेहइ संगामइ ॥ पत्तउ सेण्णसणाहउ रहणेउरपुरणाहउ ॥२१॥
२२ राउ सयंपह पुत्तु खलत
जाम ण हम्मइ तेहिं अखत्ते । तांव अमियतेएण पवुत्तउं असणिघोस किं कियउं अजुत्तउं । परकलत्तु किं आणिउ गेहहु हक्कारिय भवित्ति णियदेहहु । एम भणेवि तेण लहु मुक्की विज महाजालणि रणि दुकी । पवणुqयचिंधु सविमाणउ तं पेक्खिवि सहस त्ति पलाणउ । जहिं णायहु सीमागिरिवरु विजउ णामु जहिं अच्छइ जिणवरु। परणारीहरु भयवसु तट्ठउ
समवसराण तहि सरणु पइट्ठउ। भ्रामरी विद्याके माहात्म्यसे दर्पपूर्वक दो रूपोंमें उछला। दोके मारे जानेपर चार उछले। उनके भी दो भाग होनेपर आठ उत्पन्न हुए । आठके आहत होनेपर सोलह हुए । सोलहके आहत होनेपर बत्तीस हो गये, जबतक बत्तीस खण्डित हुए, तबतक चौंसठ हो गये । चौंसठ भी स्वरूपसे विदलित हो गये, तो एक सौ बीस हो गये। इस प्रकार दो की वृद्धिसे बढ़ता हुआ तथा वसुनन्दक तलवार जिसके हाथ में है ऐसा वह जल, स्थल, दसों दिशाओं और आकाशके प्रांगण में सब जगह दिखाई देता है । इस प्रकार विद्याधरोंने पोदनपुरराजाको घेर लिया, मानो महाघनसमूहने विन्ध्याचलको घेर लिया हो।
पत्ता-बूढ़े शृगालोंसे भयंकर उस वैसे संग्राममें सैन्यसे सहित रथनूपुरका राजा वहां आया ॥२१॥
२२
स्वयंप्रभाका पुत्र राजा श्रोविजय जब उनके द्वारा दुष्टता और अन्यायसे नहीं मारा जा सका तो अमिततेजने कहा- "हे अशनिघोष, तुमने यह अनुचित क्या किया? दूसरेकी स्त्री अपने घरमें क्यों लाये। तुमने अपने शरीरको होनहारको स्वयं चुनौती दी है।" इस प्रकार कहकर उसके द्वारा फेंकी गयी महाज्वालिनी नामकी विद्या शीघ्र युद्ध में पहुंची। उसे देखकर हवामें जिसका ध्वज उड़ रहा है ऐसा विमान सहित वह सहसा भाग खड़ा हुआ। जहाँ नाभेयसीम नामका गिरिवर था और जहां विजय नामके जिनवर थे, भयके वशीभूत होकर परस्त्रीका
२१.१. A समागय । २. AP हय । ३. A जरफेकारवभीमइ । ४. Pणाहह । २२.१. AP महाजालिणि णहि ढक्की । २. AP सरणि ।
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