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-६०. ७. १२ ]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित घत्ता-घरिणिइ पसरियदुक्खइ महुं डझंतहु भुक्खइ ।
भुंज हि भणिवि विसालइ चित्त वराडय थालइ ।।६।।
तुहुं महुँ दइवें दिण्ण बंभणु उजंउ करहि ण भरहि कुडुंबउं एम जाम घरणीइ पबो अइणियडउं जि जलणु पज्जालिउ तक्खणि सिहिफुलिंगु उच्छलियउ हउ थिउ तं जोयंतु सइत्त र उत्तरु महुँ ण देसि जपंतिहि जं इंगालउ पडिउ वरालइ जं पई पाणिएण अहिसिंचिउ सा जंपइ पइ बुद्धिहि भुल्लर घत्ता-डज्झउ णिद्धणजंपिउं
परु जणवउ कि वुच्चई
एत्तिउं तेरउं अच्छइ कुलहणु । लोयणजुयलु करिवि आयंबउं । ता महुं हियवउ णं झसेसल्लि उ । इंधइ इंधणु केण वि चालिउ । आविवि जलयरि गरुयह घिविय। ता कंतइ सिरि सलिलिं सित्तउ । मैई दर विह सिवि भासिउं पत्तिहि । तं तडि पंडिही पोयणपालइ । तं जाणेहि हरयणहिं अंचिउ । चप्फलु झंखइ चंदगहिल्लउ । महुरु वि कण्णहं विप्पिउं ।। कुलघरणिहिं वि ण रुच्चइ ॥७॥
घत्ता-जिसका दुःख बढ़ रहा है ऐसी गृहिणीने भूखसे जलते हुए मुझपर, 'खा लो' कहकर बड़ी-सी थालीमें कौड़ियां डाल दी" ॥६॥
७
देवने तुम जैसा ब्राह्मण मुझे दिया। तुम्हारा कुल धन इतना ही है, उद्यम कर अपने कुटुम्बका पालन नहीं करते हो-अपनी दोनों आँखें लाल-लाल करते हुए जब इस प्रकार स्त्रीने कहा तो मेरा हृदय प्रज्वलित हो उठा। मेरे अत्यन्त निकट जलती हुई आग थी। किसीने चूल्हे में आग चला दो। तत्क्षण आगको चिनगारो उचटी और आकर विशाल कौड़ीपर गिर पड़ी। मैं सावधान होकर उसे देखता हुआ स्थित था। तब पत्नीने सिरपर उसे सींच दिया। ( बोली) "बोलते हुए मुझे तुम उत्तर नहीं दोगे।" तब मैंने थोड़ा हंसते हुए पत्नीसे कहा-“कौड़ीपर जो अंगारा पड़ा है वह पोदनपुरके राजापर बिजली गिरेगी और जो तुमने पानीसे उसे सींचा है, उससे तुम यह जानो कि मैं रत्नोंसे अंचित होऊँगा?" वह बोली-“पति बुद्धिसे भोला है, चन्द्रमासे अभिभूत (पागल ) वह मिथ्याभाषासे सन्तप्त होता है।
पत्ता-निर्धन व्यक्तिके द्वारा कहे हुएको आग लग जाये, मधुर होते हुए भी ( कथन ) कानोंके लिए बुरा लगता है, दूसरे लोग क्या कहेंगे, खुद कुलोन गृहिणीको गरीब ( पति ) की बात अच्छी नहीं लगती' ||७||
७. १. AP उज्जमु । २. P झससिलिलउ । ३. AP पजालिउ । ४. AP स्यइ जलयरि । ५. AF जं
जोयतु। ६. A omits this foot. । ७. P दराडइ। ८. P तडि पडिहीसी। ९. AP जामि । १०. A सइ जंपइ; P स वि जंपद । ११. P चप्पलु। १२. AP रुच्चाइ ।
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