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-५९.१२.२]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित
भग्गणरिंदो
तो गोविंदो। माणमहंतो भणइ हसंतो।
मंदो मई सच्छंदो। कप्पं
तमहं भप्पं। करमि अदप्पं किं माहप्पं । अत्थि पराणं खग्गकराणं । दोण्णयमुकं
मोत्तूणेकं । लंगलपाणिं
को पहु दाणिं। मई जीवंत वइरिकयंते। वयणं चंडं
सुइवह कंडं। तं सोऊणं
चारु अदीणं। विगओ दूओ हरिसियभूओ। कुंजरगइणो
तेण सवइणो। कहिया वत्ता कुरु रणजत्ता। ण करइ संधी लच्छि पुरंधी-।
लोलो रामो कण्हो भीमो। घत्ता-तक्खणि संणद्धउ उभियधुयधउ रोसें कहिं वि ण माइउ ॥ हयतूरगहीरें सहुं परिवार मेहुकीडउ उद्धाइउ ॥११॥
१२ . रमणीदमणई रिउआगमणई। जूरियसयणइं णिसुणिवि वयणई।
तब जिसने राजाओंको नष्ट किया है ऐसा वह मानसे महान् गोविन्द हंसता हुआ कहता है-इस धरतीपर जो मूर्ख और स्वच्छन्द मुझसे कर मांगता है मैं उसको भस्म करता हूँ और दर्पहीन बनाता हूँ। जिनके हाथमें तलवार है, ऐसे शत्रुओंका क्या माहात्म्य । दुर्नयसे रहित एकमात्र बलभद्रको छोड़कर इस समय कोन स्वामी है? शत्रुओंके लिए कृतान्त मेरे जीते हुए। कानोंके लिए तीरके समान उन सुन्दर अदीन प्रचण्ड वचनोंको सुनकर जिसकी भुजा हर्षित है, ऐसा वह दूत चला गया। हाथीके समान चलनेवाले अपने स्वामीसे उसने यह बात कही कि युद्ध के लिए प्रस्थान कीजिए। हे देव, वह सन्धि नहीं करता, लक्ष्मी और इन्द्राणी स्त्रियोंके लिए चंचल कृष्ण बहुत भयंकर है।
__घत्ता-मधुक्रोड़ तत्काल सन्नद्ध हो गया, आन्दोलित ध्वज वह कहीं भी नहीं समा सका। बजते हुए नगाड़ों और परिवारके साथ मधुक्रोड़ दौड़ा ॥११।।
१२
स्त्रियोंका दमन करनेवाले शत्रुआगमन और स्वजनोंको सतानेवाले वचनोंको सुनकर, ११. १. A तो । २. भमइ स छंदो । ३. A मंगह। ४. A करुणाजुत्ता। ५. AP महुकोलउ ।
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