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महापुराण
[ ५९.१२.३जोइयमुयबल णिग्गय हरि बल। झल्लरि वज्जइ दुंदुहि गज्जइ। संचल्लिय चमु हुउ महिविब्भमु । उक्खयखग्गई सेण्णइं लग्गई। भडकडवेहणि मोडियसंदणि। फाडियधयवडि तोडियगयगुडि। पहरणसंकडि विहडावियघडि । सुरवरदारुणि णवकोवारुणि। देहवियारणि
खेयरमारणि । चुयजंपाणइ
खलियविवाणइ। कुरयंधारइ
घेणुटकारइ। धाइयबाण
लुयर्तणुताणइ। रुहिरज्झलझलि परवरगोंदलि।
मारियवारणि तहिं पइसिवि रणि । घत्ता-पडिसत्तुं वुत्तउं एउं अजुत्तउं जं मई सहुँ रणि जुज्झहि ॥
तहुं भिच्चु कुलीणउ हउं तुह राणउ एत्तिउं कज्जु ण बुज्झहि ॥१२॥
दे देहि कप्पु पई गिलंउ अज्जु ता भणि तेण
मा कालसप्पु। अणुहुँजि रज्जु । दामोयरेण ।
अपना बाहुबल देखते हुए नारायणकी सेना निकली। झल्लरी बज उठी, दुन्दुभि गरजी । सेनाने कूच किया। मतिभ्रम होने लगा। तलवार उठाये हुए सेनाएँ भिड़ गयीं। जिसमें योद्धाओंका कचूमर हो रहा है, रथ मोड़े जा रहे हैं, ध्वजपट फाड़े जा रहे हैं, हाथियोंके कवच तोड़े जा रहे हैं, हथियारोंका जमघट हो रहा है, गजघटा विघटित हो रही है, जो सुरवरोंसे भयंकर है, नवकोपसे अरुण है, जो शरीरका विदारण करनेवाला और विद्याधरोंको मारनेवाला है, जिसमें जवान च्युत हो रहे हैं, विमान स्खलित हो रहे हैं, पृथ्वीकी धूलसे अन्धकार हो रहा है, जिसमें धनुषकी टंकार हो रही है, बाण दौड़ रहे हैं, शरीरके कवच काटे जा रहे हैं, रुधिर चमक रहा है, नरवरोंकी हषध्वनि हो रही है, जिसमें गज मारे जा रहे हैं, ऐसे उस रणमें प्रवेश कर
घत्ता-प्रतिशत्रुने कहा, "यह अनुचित है कि जो तुम मेरे साथ युद्ध में लड़ते हो। तुम भृत्य हो, मैं कुलोन । में तुम्हारा राजा हूँ, तुम इतना काम भी नहीं समझते ॥१२॥
तुम कर दे दो, कहीं तुम्हें आज कालसर्प न निगल ले। तुम राज्यका भोग करो।" तब १२. १. A जोइवि। २. AP°मणि । ३. P पाडियं । ४. P°ह्यगुडि । ५. AP अलिझंकारह ।
६. A°तणताणइ । ७. A पडिसत्तें। १३. १. P गिलइ ।
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