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महापुराण
[५९.३.२७गउ सक्कु सुहम्महु पणविवि धम्महु 'पेणइसिरु
वड्ढइ परमेसरु रूवें जियसरु महुरगिरु । घत्ता-पणयोलसुचावई उज्जुयभावइं गरुएं तणु तुंगत्तें ॥
तेलोकहु सारे अरुहकुमार जणु रंजिउ धणु देंतें ॥४॥
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ताव कुंअरत्तणे देवकय कित्तणे। लक्खजुयसंजुयं अद्धलक्खं गयं । वच्छेरविसेसहं अच्छरसुरेसंह। विरइय अॅणिंदओ जसविडविकंदओ। इंदकयण्हाणओ जायओ राणओ। वयसमोलक्खहं
गयह कयसोक्खहं। चंदिमाकंतिया
उक्क णिवडंतिया। तेण अवलोइया विहियणिवेइया। सई जि उम्मोहिओ पुणु वि संबोहिओ। वरकुसुमहत्थहिं. दिव्वरिसिसस्थहिं। हरिहिं अहि सिंचिओ वंदिओ अंचिओ। सिहरलिहियंबरं णाययत्तं वरं। सिवियमारोहि वम्महं जोहिउं । मंदिरा णिग्गओ सालवणमुवगओ।
माहि तेरहमए दियहि समियंकए। पर्वतपर अभिषेक किया, और लाकर प्रिय शब्दोंसे सुन्दरी माताको सौंप दिया। प्रणत शिर इन्द्र धर्मनाथको प्रणाम कर सौधर्म स्वर्ग चला गया। अपने रूपसे कामदेवको जीतनेवाले मधुरवाणी परमेश्वर रूपमें बढ़ने लगे।
घत्ता-उनका शरीर ऊंचाई और गुरुत्वमें सरल पैंतालीस धनुष था। त्रैलोक्यमें श्रेष्ठ अर्हत् कुमारने धन देकर लोगोंका रंजन किया ॥४॥
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जिसका देवोंने कीर्तन किया है ऐसे कौमार्यकालके दो लाख पचास हजार विशेष वर्ष उनके बीत गये । अप्सराओं और इन्द्रोंने जिनके आनन्दको रचना की है, जो यशरूपी वृक्षके अंकुर हैं, इन्द्रके द्वारा जिनका अभिषेक किया गया है, ऐसे वह राजा हो गये। सुख उत्पन्न करनेवाले उनके पाँच लाख वर्ष बीत गये। उन्होंने चन्द्रमाके समान कान्तिवाली, वैराग्य उत्पन्न करनेवाली एक गिरती हुई उल्का देखी। वह स्वयं ही विरक्त हो गये, फिर भी उन्हें श्रेष्ठ कुसुम जिनके हाथमें हैं, ऐसे दिव्य मुनिसमूहोंके द्वारा सम्बोधित किया गया। वह देवेन्द्रोंके द्वारा अभिसिंचित और अर्चित हुए। अपने शिखरसे आकाशको छूनेवाली श्रेष्ठ नागदत्ता
११. AP पणयसि । १२. A सचावई। ५. १. AP कुमरत्तणे । २. P°विसे सेहि । ३. P°सुरेसे हिं । ४. AP विरयाणंदमओ। ५. A क्यसमलक्खह; _P वयसमसुलक्खहं । ६. A णवकुसुम । ७. A समयंकर ।
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