________________
३४०
महापुराण
[५९. ३.३पुरं णिबद्धतोरणं
घरं समेत्तवारणं। करेहि तं तहा तुम
कुलकमागयं इमं । णमंसिउं सुराहिवं
तओ गओ धणी भुवं । णवप्पसंडिपीयलं
अणेयखाइयाजलं। अणेयवण्णसालयं
अणेयणट्टसालयं । अणेयकेउछाइयं
अणेयतूरणाइयं । अणेयदारदावणं
अणेयवल्लरीवणं। अणेयसुंदरावणं
अणेयतित्थपावणं। कयं पुरं महासरं
तैहि चि रायमंदिरं। घत्ता-तहिं पच्छिमरयणिहि सुत्तइ सयणिहि दीसइ देविइ कुंजरु॥
पसुवइ पंचाणणु विप्फुरियाणणु मयमारणणहपंजर ॥३॥
अवर वि सिरिदामई दिट्ठिहि सोम्मई ढोइयइं
___णहि पंडुरतंबई ससिरविबिंबई जोइयई। दुइ मीण रईणड दुइ मंगलघड सरयसरु
* जलणिहि जलभीसणु सेहीरासणु सकघरु । उरगिंदणिहेलणु णाणामणिगणु सत्तसिहु
मुद्धइ अवलोइउ मणि संमाइउ भणिउ पहु । मई दिवा सिविणेय सोलह सिविणय देंतु सुहुं जिनेश्वरको जन्म देगी। अतः तोरणोंसे निबद्ध नगर और वारणों सहित घर तुम वहां इस प्रकार बनाओ कि जिस प्रकार कुलक्रमागत हो।" तब देवेन्द्रको नमस्कार कर उस समय कुबेर मनुष्यलोकके लिए गया। उसने महासरोवरसे युक्त नगर और राजभवन बनाया, जो नवसुवर्णसे पीला था, जिसमें अनेक खाइयोंका जल था, जिसमें अनेक रंगके परकोटे थे, अनेक नृत्यशालाएं थीं, जो अनेक पताकाओंसे आच्छादित था, अनेक तूर्योसे निनादित था, अनेक द्वारों और दावण (पशुओंको बांधनेकी रस्सी) से युक्त था, जिसमें अनेक सुन्दर बाजार थे जो अनेक तीर्थोंसे पवित्र था।
पत्ता-वहाँ शय्यापर सोती हुई देवी रात्रिके अन्तिम प्रहरमें देखती है-हाथी, बैल, विस्फारित मुखवाला तथा हरिणोंके मारनेसे पीले नखोंवाला सिंह ।।३।।
और भी दृष्टिके लिए सौम्य श्रीमालाएं देखीं, आकाशमें सफेद और लाल चन्द्रमा तथा सूर्यके बिम्ब देखे । रतिमें नृत्य करते हुए दो मीन, दो मंगलकलश, शरद्का सरोवर, जलसे भयंकर समुद्र, सिंहासन, इन्द्रघर ( देव विमान ), नागभवन, नाना रत्नराशि, अग्नि । उस मुग्धाने स्वप्नोंको देखा, मनमें उनका सम्मान किया और अपने स्वामीसे कहा कि मैंने सोलह स्वप्न
२. P सम्मत्तं । ३. A तहिं च रायं । ४. १. AP अवरु । २. AP सुविणय ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org