________________
३४६
महापुराण
[ ५९.८.२सेणिय हलहरचक्कहराणं
णिसुणहि चरियं णरपवराणं । णवसासंचियवसुमइदेहे
जंबूदीवे अवरविदेहे। णिवसइ णरवइ परदुव्विसहो वीयसोयणयरे णरवेसहो। सो संसारजायणिवेयउ
दमवरपासे सुद्धिसंमेयउ। काउं तवचरणं जिण दिटुं. विसहियकेसालुंचणणिटुं। पत्तो णिरसणविहिणा सग्गं तं सहसारं भोयसमग्गं । अट्ठारहजलणिहिपरिमाणे
तस्सेयारहमे वोलीणे। जइया तइया इह रायगिहे जयरे घरसिरणश्चियबरिहे। णाम सुमित्तो अप्पडिमल्लो
दुजणहियउप्पाइयसल्लो। जुज्झे सो भुयबलमयमत्तो
रायसीहराएण णिहित्तो। ताम तेण परिमउलियणेत्ते परिभवदुक्खपरंपरछित्तें। घत्ता-णियरज्जु मुएप्पिणु तणयहु देप्पिणु जुण्णउं तणु व गणेप्पिणु ॥
चिण्णउं व्रडै दूसहु कयवम्महवहु कण्हसूरि पणवेप्पिणु ॥८॥
णवर पमाएं भीमें रुद्ध खरतवझीण पत्थइ तवहलु आगामिणि भवि
माणकसाएं। हियवइ कुद्धउ।
सासु अयाणउ। - होजउ भुयबलु ।
भडेरवि रउरवि ।
श्रेणिक, हलधर और चक्रवर्ती नरश्रेष्ठोंका चरित्र सुनो। जिसकी भूमिरूपी देह नवधान्योंसे अंचित है, ऐसे जम्बूद्वीपके अपर विदेहके वीतशोक नगरमें शत्रुको सहन नहीं कर सकनेवाला राजा नरवृषभ निवास करता था। संसारसे वैराग्य उत्पन्न होनेपर शुद्धि सहित वह दमवर मुनिके पास, जिसमें केशलोंचकी निष्ठाको सहन किया जाता है, ऐसा जिनके द्वारा उपदिष्ट तपको कर उसने अनशन विधिके मार्गसे भोगसे परिपूर्ण सहस्रार स्वर्ग प्राप्त किया। उसकी अठारह सागर प्रमाण आयुमें-से जब ग्यारह सागर आयु निकल गयी तो जिसके गृहशिखरोंपर मयूर नृत्य करते हैं, ऐसे राजगृह नगरमें अप्रतिमल्ल और दुर्जनोंके हृदयमें शल्य उत्पन्न करनेवाला सुमित्र नामका राजा हुआ। भुजबलसे प्रमत्त वह युद्ध में राजसिंह राजके द्वारा पराजित कर दिया गया। तब पराभवको दुःख-परम्परासे अभिभूत अपनी आँखें बन्द किये हुए वह
घत्ता-अपना राज्य छोड़कर और पुत्रके लिए देकर जीर्ण तृणकी तरह समझकर जिन्होंने कामदेवका नाश कर दिया है, ऐसे कृष्णसूरि मुनिको प्रणाम कर उसने असह्य व्रत स्वीकार कर लिया ॥८॥
परन्तु नहीं, वह भीषण मान कषायसे रुद्ध अपने हृदयमें क्रुद्ध हो उठा। अत्यन्त तपसे क्षीण वह अज्ञानी साधु यह तपफल मांगता है कि आगामी भवमें मेरा ऐसा बाहुबल हो, जिससे
२. P णरवासहो। ३. P संसारह जायं । ४. सम्मेयउ । ५. A रायहरे । ६. A वउ; P तउ । ९. १. AP अजाणउ । २. AP भडयणि ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org