________________
३२८
१५
५
१०
महापुराण
घत्ता - तमहारहिं जलणकुमारहि जिणसरीरु संकारि ॥ णीसलहिं घल्लियफुल्लहिं अमरिंदहिं जयकारिउ || १३||
'संपण्णवासतव विहूइ
अवरु वि समदमसंजम पसत्थि सुपरिसुत्तमगुणणिहाणु पंचसयधणुण्णयमणुयदेहि उत्तंगु काउ दिण्णायणाङ पयपाल अरिहु पय णवेवि मरुद्ध सल्लें अणेण पण कदविहवियप्पि अट्ठारह सायरपरिमियाउ
१४
पुणु भासइ गणहरु इंदभूइ । वित्त अनंत जिणणाह तित्थि । सुण मागसह रिबलपुराणु । इह जंबुदीवि सुरदिसिवि देहि ।
दरि महाबलु णाम राउ | रिसि जायउ तणयहु रज्जु देवि । तणुचाउ करिवि सल्लेहणेण | सुर सहसारइ सहसारकप्पि | किं वण्णमि सुरवरु सुद्धभाउ ।
घत्ता - इह भारहि पयडियसुहवहि पोयणपुरि चिरु होंत ।। वसुसेउ तृर्यमणथेण णरवइ वइरिकयंत ||१४||
[ ५८. १३. १४
धत्ता-तमका नाश करनेवाले अग्निकुमार देवोंने जिन शरीरका संस्कार किया । निःशल्य तथा पुष्पवर्षा करते हुए देवोंने उनका जय-जयकार किया ॥ १३॥
Jain Education International
१४
सम्पूर्ण द्वादश प्रकारके तपकी विभूति इन्द्रभूति गणधर कहते हैं, शम-दम और संयमसे प्रशस्त अनन्तनाथ तीर्थंकरके तीर्थ में एक और वृत्तान्त हुआ । सुप्रभ और पुरुषोत्तमके गुणसमूह से युक्त, नारायण और बलभद्रका पुराण हे मागधेश, सुनो। इस जम्बूद्वीपमें जहां मनुष्यके शरीरकी ऊँचाई पांच सौ धनुष है ऐसे पूर्वविदेहके नन्दपुर में दिग्गजकी तरह नादवाला उत्तुंग शरीर महाबल नामका राजा था । वह प्रजापाल (नामक) अर्हतु के चरणों में प्रणाम कर, अपने पुत्रको राज्य देकर मुनि हो गया। किसी भी प्रकार ( किसी भी मूल्यपर ) उसने मतिको शल्यसे अवरुद्ध नहीं होने दिया । सल्लेखनाके द्वारा शरीरका त्याग कर, जिसमें दस प्रकारके कल्पवृक्ष हैं, ऐसे सहस्रार स्वर्ग में देव हुआ । उसको आयु अठारह सागर प्रमाण थी । उस शुद्धभाववाले देवका में क्या वर्णन करूँ ?
धत्ता - इस भारतवर्ष में, पहले जिसमें शुभपथ प्रकट है ऐसा पोदनपुर नगर था। उसमें स्त्रीके मनको चुरानेवाला और शत्रुओंके लिए यमके समान राजा था || १४ ||
९. A सक्कारिउ ।
१४. १. P has before this: जिणतणु पणवेष्पिणु गउ सुरिंदु, धरणेंदु गरिंदु खगिदु चंदु; K gives it in margin in second hand । २. A संपुष्णु । ३ AP उत्तुंग काउ । ४. AT मइ ण|वरुद्ध | ५. AP दहवियवियपि । ६. AP तियमण ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org