________________
-५८. १६.३]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित
३२९
१५
मुहेइंदोहामियसरयचंद महएवि तासु णामेण णंद । रइरहसपसाहियजोव्वणाई अच्छंति जाम बिणि वि जणाई। तामायउ जियपडिवखेदंडु णामेण चंडसास] पयंडु। अइरावयकरथिरथोरबाहु
राण : सुहडग्गैणि मलयणाहु । वसुसेणें मण्णिउ परममित्तु रहु कंतहि लग्गउ तासु चित्तु। अवलोइवि णंदहि चारु वयणु विडु जूरेइ ओहुल्लंतवयणु । अवलोइवि गंदहि खीणु मज्झु विडु कुप्पइ तप्पइ हिययमज्झु । विडु सहँहुँण सक्किउ मयणंबाणु अवहरिवि णंद गउ णिययठाणु । वसुसेणे दइय विओइएण
असमर्थ विहिणित्तेइएण । वर्ड लइउ पासि णासियसरासु सेयंसणामजोईसरासु। अप्प दंडिउ छंडिउ ण माणु संमोहजणणु बद्धउं णियाणु । पत्ता-तवचरणहु खंचियकरणहु हउं फलु एत्तिउं मग्गमि ।।
परयारिउ सो खलु वइरिउ मारिवि परभवि वग्गमि ॥१५॥
तहु रुहिरवारिधाराइ जेव इय बंधिवि दुट्ट णियाणसल्लु संभूयउ तहिं सहसारसग्गि
परिहवपडु धोवमि होउ तेव । मुउ सो काले मोहंबुगिल्लु । जिणतवहलेण माणियसमग्गि ।
अपने मुखचन्द्रसे शरद्चन्द्रको पराजित करनेवाली उसकी नन्दा नामकी महादेवी थी। जिनका यौवन रतिरससे प्रसाधित है, ऐसे वे दोनों जबतक वहाँ थे तब जिसने शत्रुपक्षके दण्डको जीत लिया है. ऐसा चण्डशासन नामका राजा आया। ऐरावतकी संडके समान स्थिर स्थूल हाथोंवाला तथा सुभटोंमें अग्रणी वह मलय देशका राजा था। वसुषेणने उसे अपना मित्र मान लिया। उसकी पत्नीसे उसका चित्त लग गया। नन्दाका सुन्दर मुख देखकर अवनतमुख वह दुष्ट पीड़ित हो उठता है। नन्दाका क्षीण मध्य भाग देखकर, उसके हृदयका मध्यभाग क्रुद्ध और सन्तप्त होता है। वह विट कामबाणको सहन करने में समर्थे नहीं हो सका, वह ( चण्ड) नन्दाका अपहरण कर अपने स्थानपर चला गया। पत्नीसे वियुक्त, असमर्थ और भाग्यसे निस्तेज वसुषेणने कामदेवका नाश करनेवाले श्रेयांस नामक योगीश्वरके पास व्रत ग्रहण कर लिया। अपनेको दण्डित किया। परन्तु मान नहीं छोड़ा। उसने मोह उत्पन्न करनेवाला निदान बांधा।
__घत्ता-“इन्द्रियोंको दमित करनेवाले तपश्चरणका मैं इतना ही फल मांगता हूँ कि दूसरे जन्ममें परस्त्रीका अपहरण करनेवाले उसे मारकर मैं नृत्य करूं।" ॥१५॥
जिस प्रकार उसकी रक्तरूपी जलधारामें मैं अपने पराभवके पटको धो सकूँ, वैसे ही वह दुष्ट यह निदान-शल्य बांधकर और मोहग्रस्त होकर समय आनेपर मर गया। जिन तपके १५. १. AP मुहयंदों । २. A°पडिवखवंदु; P°पडिवक्खदंदु । ३. A चंडसासणपयंडु । ४. A सुहडग्गमि ।
५. AP झूरइ । ६. A ओहुल्लंभवयणु ; P उहुल्लुल्लवयणु । ७. A सहिदि । ८. AP वउ । १६. १. A मोहंधगिल्लु but T मोहजलाः ।
४२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org