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-५८. १३. १३ ]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित धत्ता-अणुसंकुलु हत्थर्यलामलु जिह तिह णिहिलु णिरिक्खिउं ॥
मयमत्तउं मयणासत्तउं तिहुवणु पहुं पई रक्खिउं ॥१२।।
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जिम्मुक्ककसाय जिणेसरासु जाया गणहर पण्णास तासु । पु०वंगधराहं सहासु वुत्तु
तं तिउणउं वाइहिं दुसयजुत्तु । चालीससहस एक्कूण भणमि पंच जि सयाई भिक्खुयह गणमि । चत्तारि सहस तिण्णि जि सयाई अवहीहराहं पालियवयाई। वयसहसई केवलदसणाई
मणपज्जवणाणमहागुणाहं । तेत्तियई जि मयविदावणाहं वसुसमयई सिद्धविउठवणाहं । अव सहासई एक्कु लक्खु संजमधारिहि सण्णाणचक्खु । सावयह लक्ख दो चउ भणंति सावइहिं महाकइ किर गणंति । गयसंख तिर्यसगण वंदणिज्ज संखेज तिरिक्ख णमंसणिज्ज । संमेयहु सिहरु समारहेवि छेइल्लु झाणु दढयरु धरेवि । विच्छिण्णउं किरियाजालु सयलु ओसारिवि देउ तिदेहणियलु । गउ मोक्खहु अमवासाणिसियहि गुरुजोयब्भासे तहिं जि दियहि । रिदुसमसहसाई सउत्तराई सिद्धाई रिसिहिं पणमामि ताई।
घत्ता-अणुओंसे व्याप्त यह समस्त संसार हे प्रभु, आपने जिस प्रकार हाथपर रखा हुआ आंवला, उसी प्रकार समस्त संसारको देखा है और मदमत्त तथा काममें आसक्त त्रिभुवनकी रक्षा की है ॥१२॥
ITTपास पहागण
उन जिनेश्वरके कषायसे रहित पचास गणधर थे। पूर्वांगधारी एक हजार कहे गये हैं, तीन हजार दो सौ वादी कहे गये हैं। उनतालीस हजार पांच सौ भिक्षुक थे, चार हजार तीन सौ व्रतोंका पालन करनेवाले अवधिज्ञानधारी थे। केवलज्ञानी पांच हजार, मनःपयेयज्ञान युक्त पांच हजार । विक्रियाऋद्धिसे सिद्ध मुनि आठ हजार थे। संयम धारण करनेवाली और ज्ञाननेत्र आर्यिकाएँ एक लाख आठ हजार थीं। महाकवि श्रावक दो लाख गिनते हैं और श्राविकाएं चार लाख । वन्दनीय देवगण असंख्यात था और नमन करने योग्य तिथंच संख्यात थे। सम्मेद शिखरपर आरोहण कर तथा दृढ़तासे अन्तिम ध्यान धारण कर उन्होंने समस्त क्रिया-जालको विच्छिन्न कर दिया।' देव तीन शरीरोंकी श्रृंखलाको हटाकर, चैत्र कृष्णा अमावस्याके दिन, गुरुयोगमें छह हजार एक सो मुनियोंके साथ सिद्धिको प्राप्त हुए, मैं उन्हें प्रणाम करता हूँ।
६. A हत्यतला । ७. AP सयलु । ८. AP पई पहु । १३. १. A सहासेवकूण । २. AP सिक्खुयहं । ३. A वसुसहस सिद्ध; P वसुसहसइं सिद्ध । ४. AP °वेउ
व्वणाहं। ५. A सणाणचक्खु । ६. P omits गण । ७. A अमवासहो णिसाहे; P अमवासाणिसीहि । ८. A सदुत्तराई।
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