________________
- ५८. ११.४ ]
महाकवि पुष्पदन्त विरचित
१०
ता तगुरु रंजियछणससीहिं हवणाइडं पोमासंग मे हिं अप्पिवि अनंत विजयहु सधामु महुरज्जुणिकिंकिणिलंबमाणु छट्ठेण जेट्ठमासंतरालि वरुणासाघुलिइ खरं सुजालि पहु पंचमुट्ठि सिरि लोड देवि ates दिणि दिrयरकरफुरंति विसाएं अतु दिण्णउं तें' तहु आहारदाणु
मासम्म पहिल्लइ महुपमत्ति पुल्लिइ वणि आसत्थमूलि संभूयउं लोयालोयगा आइय बत्तीस वि सुरवरिंद
संबोeिs दिव्वमहारिसीहिं । कल्लाणु करं सुरपुंगमेहिं । से रज्जु धणु साहिरामु | आरूढउ सायरदत्त जाणु । बारसिवासरि णित्तारवालि । उज्जाणि सहेउइ घणतमालि । सहसेण णिवह सहुँ दिक्ख लेवि । हिंडंतु देउ उज्झाउरंति । जयकारिवि धरिउ महीमहंतु ।
पंचविहु वियंभिउ चोज्जठाणु ।
धत्ता- नियमत्थहु दसदिसिवत्थहु खरतवचरणसमत्थहु ॥ दुइ अह दुरियविमद्दई गयई तासु छम्मत्थहु ॥ १०॥
Jain Education International
११ णिचंदइ दिणि मासंतपत्ति । पंचमउ णाणु हयघाइमूलि । थिउ अरुहावत्थहि भुवणसामि । गह तारा रिक्ख खरंसु चंद |
३२५
५
१०
तब जिन्होंने अपने शरीरकी कान्तियोंसे पूर्णचन्द्रको रंजित किया है ऐसे दिव्य - महाऋषियों ( लोकान्तिक देवों) ने उन्हें सम्बोधित किया । लक्ष्मी सहित देवश्रेष्ठोंने अभिषेक कर दीक्षा कल्याणक किया । अनन्तविजयके लिए अपना घर, समस्त राज्य और सुन्दर धन देकर, मधुर ध्वनिवाली किंकिणियोंसे शोभित सागरदत्ता नामकी शिविकामें चढ़कर ज्येष्ठ कृष्णा द्वादशी के दिन ( जबकि चन्द्रमा उदित नहीं हुआ था ), सूर्यके पश्चिम दिशा में ढलनेपर, सहेतुक उपवन में पांच मुट्ठियोंसे केश लौंच कर एक हजार राजाओंके साथ स्वामीने दीक्षा ले ली । दिनकरकी किरणोंसे चमकते हुए दूसरे दिन अयोध्या नगरीमें विहार करते हुए धरती में पूज्य अनन्तनाथको राजा विशाखभूतिने जयजयकार कर रोक लिया। उसने उन्हें आहार दान दिया । वहाँ पाँच आश्चर्यके स्थान हुए ।
घत्ता - नियमों में स्थित दिगम्बर तीव्रतर तप करने में समर्थ और छद्मस्थ उनके पापोंको नाश करनेवाले उनके दो वर्ष बीत गये ||१०||
१०
११
मधुसे प्रमद चैत्रकृष्ण अमावस्या के ( चन्द्रविहीन ) दिन पूर्वोक्त वन ( सहेतुकवन ) में अश्वत्थ वृक्षके नीचे चार घातिया कर्मोंका नाश करनेपर उन्हें पाँचवाँ ज्ञान उत्पन्न हुआ । वह लोकालोकको देखनेवाले हो गये तथा भुवनस्वामी अर्हत् अवस्थामें स्थित हो गये । बत्तीसों
For Private & Personal Use Only
१०. १. API
२. A घणसाहिरा | ३. AP सायरदत्तु । ४. AP फुसि । ५. A विसाहभूई; P वसाहभूइ | ६. A तं तद्दृ । ७. AP चोज्जु ।
www.jainelibrary.org